इंदौर, 19 नवंबर । आज बड़वानी और धार जिले के नर्मदा घाटी के सैंकड़ों किसान, मजदूर नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर की अगुवाई में इंदौर पहुंचे और शिकायत निवारण प्राधिकरण के आफिस का घेराव किया। धरना स्थल पर पहुंचे प्रभावितों के प्रतिनिधियों की शिकायत निवारण प्राधिकरण के अध्यक्ष शंभू सिंह से चर्चा जारी है| प्राधिकरण ने दिये सैंकडों निर्णयों के बाद भी अनेक प्रभावितों को जमीन या मकान निर्माण के लिए अनुदान प्राप्त होकर भी अपना हक़ नहीं मिला है|

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से जारी प्रेस‍ विज्ञप्ति में कहा गया है कि आन्दोलन की 1994 से चली याचिका में सर्वोच्च अदालत ने शिकायत निवारण प्राधिकरण का महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात राज्य में गठन किया है | जहाँ, जिस भी मुद्दे पर शासन-प्रशासन और विस्थापितों के बीच विवाद खड़ा होगा, नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसला और तमाम कानूनी, नीतिगत प्रावधानों का पालन नहीं, उल्लंघन होगा, वहाँ उन मुद्दों पर शिकायत दाखिल करके न्याय मांगने और लेने के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायधीशों की नियुक्ति हो गयी| 2000 से 2013 तक मध्यप्रदेश में एक न्यायाधीश थे लेकिन 2015 से उनकी संख्या सर्वोच्च अदालत ने ही 5 कर दी, जबकि शासन और आन्दोलन दोनों की सहमति से कोर्ट को बताया गया कि शिनिप्रा के सामने 5000 से अधिक दावे प्रलंबित है| प्राधिकरण से अपेक्षा रही कि हर मुद्दे पर दोनों पक्षकारों की सुनवाई होकर न्यायपूर्ण निर्णय दिया जाए|

नर्मदा घाटी के या देश-दुनिया के किसी भी बांध की तुलना में अधिक बेहतर, पुनर्वास के प्रावधान होते हुए भी 35 सालों के संघर्ष से ही करीबन 20000 परिवारों ने जमीन तो 35000 परिवारों ने मकान के लिए भूखंड पाया है| फिर भी पुनर्वास बाकी है और उसी से भूमिहीन या आवासहीन बन गये घाटी के लोग फिर न्याय की गुहार लगाने आये हैं|

शिकायत निवारण प्राधिकरण की प्रक्रिया में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से प्रतिवेदन देने में देरी के अलावा, प्रतिवेदन में गलत जानकारी देने तक गड़बड़ी है| शिकायत निवारण प्राधिकरण ने तारीख तय करने पर भी विस्थापितों को खबर-सूचना न मिलने पर सुनवाई सालों तक टलती रही है| पिछले  2 सालों से डूब भुगते सैकड़ों किसानों को सर्वोच्च अदालत के 2017 के आदेश अनुसार प्रत्येकी 60 लाख रु. न मिल पाना तथा गरीब मजदूर परिवारों को 10’x12’ की टीनशेड में पड़े रहना और आदेशों के बावजूद 5.80 लाख रु. का अनुदान न मिलना अन्याय है |

विज्ञप्ति में कहा गया है कि विस्थापित चाहते है कि भ्रष्टाचारी, दलालों का हस्तक्षेप और लूट बंद करने, शिकायत निवारण प्राधिकरण प्रक्रिया तय करे और उनके हर आदेश पर अमल करवाये| शिकायत निवारण प्राधिकरण के न्यायाधीशों से चाहते है कि वे सख्त प्रक्रिया तय करते हुए, सालों से उनके या नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पास पड़ी फाइलों पर फैसला करे| पुनर्वास के लिए एक ओर हजारों करोड़ रु. की गुजरात से मांग करने वाले शासन को निर्देश दे कि डूब के पहले न हुआ पुनर्वास त्वरित पूरा करें|

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें