स्‍मृति लेख

आशीष कोठारी

पिछले दिनों हम सबसे सदा के लिए विदा हुए श्री सुन्दरलाल बहुगुणा को श्रद्धांजलि-स्वरूप लेख।

पहली बार मेरी मुलाकात उनसे वर्ष 1979 में हुई। उस समय युवा समूह के रूप में पर्यावरण के मुद्दों पर हमारी यात्रा की शुरूआत थी। ‘चिपको आंदोलन’ पहले से ही किंवदंती बन चुका था और हमारे लिए प्रेरणादायक आंदोलन था। दिल्ली में एक बैठक के दौरान सुंदरलाल बहुगुणा ने बहुत ही सौम्यता से पर दृढ़ता से हिमालय में वनों की कटाई और सड़क निर्माण को पर्यावरण तथा समाज विनाश का कारण बताया था। और यह भी कि किस तरह ग्रामीणों ने इस पागलपन को रोकने का संकल्प लिया है। उनकी मृदुल गीतमय आवाज और गढ़वाली शैली, उनका ठोस विज्ञान व जमीनी ज्ञान का मिश्रण, उनकी सादगी – इन सबने हम पर गहरी छाप डाली।

अब 42 बरस के बाद, मेरे मानस पटल और मन में ऐसी कई छवियां उभर रही हैं, जिसमें अनगिनत महिला-पुरूषों ने सभी बाधाओं को पार करते हुए विनाशकारी विकास से भारत के पर्यावरण को बचाया है। इसमें ‘चिपको आंदोलन’ की महिलाएं पहली पंक्ति में हैं, जिन्होंने हिमालय के जंगल को बचाया, जिन्हें ‘कल्पवृक्ष’ के सदस्य के रूप में वर्ष 1980-81 में हम गढ़वाल के गावों मे मिले थे। पर जिस तरह माता-पिता की मूल सीख हमारे साथ रहती है, सुन्दरलालजी की वाणी और व्यक्तित्व की छाप दशकों तक नहीं मिटी है!  

उनके योगदान के बारे में काफी कुछ कहा जाएगा। जैसे उन्होंने ‘चिपको आंदोलन’ के साथियों के साथ हिमालय में जंगल-बचाओ-मुहिम चलाई, इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1981 में जो वन 30 डिग्री से ऊपर ढलान में और 1000 मीटर समुद्र तल से ऊपर थे, उनकी कटाई पर रोक लगी। टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन चलाया। यह एक वृहत पनबिजली परियोजना थी, जिसके परिणामस्वरूप बड़ा क्षेत्र जलमग्न होने, पेड़ों की कटाई, विस्थापन होना तय था। इसके अलावा, यह संभावित भूकंप-प्रभाव वाला क्षेत्र है, जिसमें ऐसा बांध बनाना बड़ा जोखिम उठाना है। यहां तक कि इसके खिलाफ, सुंदरलाल जी ने 84 दिनों का उपवास किया, जो शायद स्वतंत्रता के बाद सबसे लम्बे उपवासों में से होगा। इसके बाद केन्द्र सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की। इस समिति ने भी कहा कि टिहरी बांध नहीं बनना चाहिए, लेकिन फिर भी केन्द्र व राज्य सरकारों और निर्माण कम्पनी के जोर से बांध बन ही गया।

इसके अलावा, पहाड़ के शराब माफिया के खिलाफ महिलाओं की अगुआई में चलनेवाले आंदोलन को उनका साथ मिला। ‘बीज बचाओ आंदोलन,’ हिमालय कृषि जैव-विविधता को हरित क्रांति की सघन रासायनिक व गैर-टिकाऊ खेती से बचाने के अभियान को भी उनका समर्थन व सहयोग था। उन्होंने अथक रूप से पर्यावरण जागरूकता के लिए देश-दुनिया में लगातार मुहिम छेड़ी। इस कड़ी में 1981-83 में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा भी शामिल है, जिसने हिमालय क्षेत्र पर पूरे देश का ध्यान खींचने की कोशिश की। इसके पहले उन्होंने, उनकी पत्नी विमला जी की प्रेरणा से कई सामाजिक सेवा कार्यों में भाग लिया; उनके ही शब्दों में उनकी पत्नी बहुत मजबूत प्रेरणास्रोत रही हैं। वे ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ और छुआछूत व जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन में भी शामिल हुए।

उनके योगदान की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। पर मैं उनके व्यक्तित्व को याद करना चाहता हूं। सौम्य, शांत प्रेरणादायी, दृढ़ विश्वास और तर्क से लैस, तुरंत ही गायब हो जाने वाला कभी-कभार का गुस्सा, एक चिर-परिचित मुस्कान बिखेरता हुआ आभामंडल था उनका। खुशी और जोश के साथ बच्चों और युवाओं से बात करना, उन्मुक्त हंसी से उन्हें अपने साथ जोड़ लेना और बुद्धि की सरल सीख देना, जैसी उनके प्रेरणास्रोत व गुरू गांधी दिया करते थे। एक वाक्य में सारे सूत्र कह देना, जैसे “पारिस्थितिकीय ही स्थायी अर्थव्यवस्था है।” उनकी सादगीपूर्ण जीवनशैली- जैसे हमेशा ही खादी पहनना, अल्पाहारी पर स्वास्थ्यकर भोजन करना, कोई तामझाम नहीं, यानी वैसा ही जीवन जिया, जिसका उन्होंने संदेश दिया।

उनका कहना था कि पारिस्थितिकी सभी की नींव में है, विकास अगर उसका सम्मान नहीं करे तो उसे विकास कैसे कहें? सुंदरलाल जी ने इस जमीनी सच्चाई से सबको रूबरू कराया। आज भारत में सत्ताधारी प्रणाली और यह जमीनी सच्चाई के बीच खाई बहुत गहरी हो गयी है। हिमालय में अभिमान से भरी चारधाम परियोजना, पनबिजली परियोजना इसके साफ संकेत हैं। इस दुखद स्थिति से पीड़ित होने से अब वे बच गए हैं, यह एक सांत्वना देने वाला ख्याल आता है। उन्होंने अपना जीवन सिर ऊंचा करके जिया, अब हमारे ऊपर है, इससे सीखना और पारिस्थितिकी और पर्यावरण सजगता व समझदारी के लिए संघर्ष को जारी रखना। (सप्रेस)

[block rendering halted]

1 टिप्पणी

  1. आज फिर आंदोलनं तिव्र स्वरूप में चलाने का अवसर आ गया है आज की सरकार ने जर,जंगल, जमीन किसान खेती समंदर तक बेचने की खान ली है .मनमानी चल रही है आक्सीजन खरिदना पड रहा है .हमारी अगदी पिढी का भविष्य हमे बघाना हे तो जर जंगल जमीन हमे बचानी होगी इस लिये युवा युवती का सहभाग बहुत जरुरी है हम पर्यावरण बघावे का अभीयान , आंदोलन फिर शुरु करना होगा

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें