पत्रकारिता- सामाजिक-राजनीतिक-प्रशासनिक हस्तियों ने दी सोशल मीडिया पर भावपूर्ण आदरांजलि

भोपाल, 7 मार्च। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक  प्रो. पुष्पेन्द्रपाल सिंह का 7 मार्च की सुबह हृदयाघात से निधन होने से पत्रकारिता जगत में शोक की लहर है।

पुष्पेंद्र पाल सिंह भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं। 2015 में वह मध्यप्रदेश जनसंपर्क विभाग में मुख्यमंत्री के ओएसडी नियुक्त हुए थे। मध्य प्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग में आने के पहले उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में 21 वर्षों तक अध्यापन किया। पहले लेक्चरर रहे, फिर रीडर, उसके बाद एसोसिएट प्रोफेसर। वहां पत्रकारिता विभाग में वे वर्ष 2005 से 2015 तक अध्यक्ष रहे। वे अपने विद्यार्थियों में एक जिंदादिल इंसान के तौर पर बहुत जनप्रिय रहे। उन्होंने वर्ष 2011 में विज्ञान भारती की पत्रिका‘साइंस इंडिया’ का संपादन किया। इधर प्रकाशित हुई उनकी तीन किताबें ‘जनसंपर्कः बदलते आयाम’, ‘पर्यटन लेखन’, ‘देश समाज और गांधी’ चर्चा में रही हैं। पुष्पेन्द्र पाल के परिवार में माता पिता के अलावा बेटी शानु और बेटा शिवपाल हैं। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो गया था। 

पीपी सर के नाम से मशहूर पुष्‍पेंद्र पाल सिंह के असामयिक निधन पर उनके सैंकडों विद्यार्थियों और पत्रकारिता क्षेत्र के वरिष्‍ठजनों, सामाजिक-राजनीतिक-प्रशासनिक क्षेत्र की हस्तियों ने याद कर सोशल मीडिया पर भावपूर्ण आदरांजलि अर्पित की है।       

मुख्‍यमंत्री का ट्वीट: अपने आप में पत्रकारिता का एक संस्थान थे

प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर लिखा, हिंदी पत्रकारिता जगत के लिए बड़ी क्षति। पुष्पेंद्र पाल सिंह मेरे लिए एक मित्र और परिवार की तरह थे, उनका असमय जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति है। एक योग्य, सरल और कर्मठ व्यक्तित्व, जिन्हें जो भी जिम्मेदारी दी गई, उसे उत्कृष्टता के साथ उन्होंने पूरा किया। पुष्पेंद्र पाल सिंह जी अपने आप में पत्रकारिता का एक संस्थान थे, उन्होंने प्रदेश और प्रदेश के बाहर पत्रकारिता के अनेकों विद्यार्थी गढ़े। विद्यार्थियों के बीच ‘पीपी सर’ के नाम से प्रसिद्ध एक योग्य गुरु का जाना स्तब्ध कर गया। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत पुष्पेंद्र पाल सिंह जी को अपने श्री चरणों में स्थान और परिजनों को यह गहन दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। वे अपने कार्यों और विचारों के माध्यम से सदैव हम सबके हृदय में रहेंगे।

आनदं प्रधान : पत्रकारिता के बेहतरीन शिक्षक-मेंटर थे

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन दिल्ली में प्रोफेसर आनंद प्रधान ने कहा कि पीपी के निधन पर कहा कि स्तब्ध हूँ विश्वास नहीं हो रहा.. मन उद्विग्न हो रहा है! आप ऐसे कैसे जा सकते हैं पीपी भाई?  क्या कहूँ?.. मेरे लिए भाई की तरह थे विद्यार्थियों के प्रिय पी.पी सर। पिछले तीस सालों के दृश्य आँखों के पर्दे पर घूम रहे हैं। मेरे लिए भोपाल का मतलब थे, पीपी..बेहद मददगार, हमेशा हाज़िर, सह्रदय..। पुष्पेंद्र जी से 90 के दशक के शुरू में जब वे बीएचयू में एमजे करने आए,परिचय हुआ। तब से वह संबंध बना रहा। उनकी कोशिशों से ही। वे संबंधों को निभाना जानते थे। गाहे-बगाहे बातचीत होती रहती थी।

पत्रकारिता के बेहतरीन शिक्षक-मेंटर थे। खुद में एक संस्था थे। विद्यार्थियों का बहुत ध्यान रखते थे। और क्या कहूँ? पीपी सर को अभी नहीं जाना चाहिए था। कितना भी बुरा हो, यह समय नहीं था जाने का। पीपी के लिए “था/थे” में लिखते हुए मन उदास हो रहा है।.. इससे ज़्यादा कुछ लिखा नहीं जा पा रहा।.. रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई..!

डॉ् विकास दवे : मीडिया और माध्यम जैसे संस्थानों का पर्याय बन गए थे

साहित्‍य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि पुष्पेंद्र पाल सिंह जी का यूँ अचानक ‘हैं’ से ‘थे’ हो जाना कुछ हजम नहीं हो रहा। मुख्यमंत्रीजी के मीडिया और माध्यम जैसे संस्थानों का पर्याय बन गए थे वे। भोपाल जाते ही उन्होंने मुझे एक बड़े आयोजन में बोलने बुला लिया। प्रधानमंत्रीजी की पुस्तक का अनुवाद गुजराती से हुआ था। लोकार्पण के बाद जो सिलसिला बना तो फिर वह मित्रता तक आ पहुंचा। अनेक ऐसे कार्य भी वे निसंकोच सौंप देते थे जो बड़े महत्व के और गोपनिय विभाग के होते थे। उनका वह विश्वास और स्नेह अब केवल स्मृति हो गया।

अमन नम्र  : पीपी जी का जाना सच में खल गया

वरिष्‍ठ पत्रकार अमन नम्र ने कहा कि पहले कमल दीक्षित सर और अब पुष्पेंद्र जी… पत्रकारिता क्षेत्र ही नहीं, सामाजिक सरोकार और निजी तौर पर बेहद अहम रहे ये इन शख्सियत का जाना भीतर तक बहुत कुछ हिला गया। पुष्पेंद्र जी को तो बचपन से ही जानता था, इनके पिता जी की अनूपपुर में पोस्टिंग थी। तब हम और पुष्पेंद्र पारिवारिक मित्र थे.. उसके बाद पिताजी का ट्रांसफर हो गया। कई सालों बाद अचानक भोपाल में भेंट हुई। फिर पुरानी यादें ताजा हो आईं। फिर से अलग-अलग कार्यक्रमों या मौकों पर मिलना-जुलना होता रहा। पीपी जी का जाना सच में खल गया… कुछ तो गड़बड़ है, कोविड के बाद हमारे बीच से अचानक कई लोग चले गए।

पत्रकारिता और जनसंचार जगत का महर्षि

पूर्व कुलपति एवं पत्रकार ओम थानवी ने कहा कि प्रो. पुष्‍पेंद्र पालसिंह मिलनसार और शिक्षण को समर्पित थे। लोग मन में गाँठें लिए मिलते हैं। वे इससे कितने मुक्त थे। इसीलिए सदा सहज और हँसमुख। अमरउजाला समूह से जुडे वरिष्‍ठ पत्रकार यशंवत व्‍यास ने कहा कि विश्वास नहीं हो रहा। PP Singh बहुत ही जिंदादिल आदमी थे।

वरिष्‍ठ पत्रकार जय राम शुक्‍ल ने शोक व्‍यक्‍त  करते हुए कहा कि वे पत्रकारिता और जनसंचार जगत का महर्षि थे। वरिष्‍ठ पत्रकार एवं माखनलाल पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रोफसर अरूण त्रिपाठी के शब्‍दों में उनका हमारे बीच न रहना यह हम लोगों का बड़ा नुकसान है और उतनी ही बड़ी हानि है समाज की।

वे पत्रकारिता के कीर्ति कलश थे

भूपेंद्र गुप्‍ता अगम ने कहा कि पुष्पेन्द्र मेरे मित्र भी थे और वैचारिक विमर्ष के सहचर भी। जीवन ने उन्हें मित्रों की असंख्य भीड़ से नवाजा, वे आलोचना का शिकार भी हुए किंतु अपनी निरंतरता और अपने प्रवाह को विराम नहीं दिया..ऐसा लगता है जैसे नदी अस्तित्व के महासागर में उतर गई और किनारों पर स्मृतियां छोड़ गई।

मित्र की तरह उनके अच्छे मार्गदर्शक रहे

आर वी आचार्य ने कहा कि श्री पुष्पेन्द्रपाल सिंह पत्रकारिता के कीर्ति कलश थे । उनका निधन न केवल पत्रकारिता जगत अपितु सामाजिक एवं राजनीतिक जगत की भी अपूरणीय क्षति है।

वि़द्यार्थी रही रानी शर्मा ने कहा कि मानवता के गुणों से भरे हुए सर को मैंने सदैव सबकी मदद के लिये हमेशा तत्पर देखा..पत्रकारिता जगत को दिए गए उनके योगदान अविस्मरणीय रहेंगे…पत्रकारिता के सैकडों विद्याथियों के लिये सर सिर्फ गुरु नहीं थे बल्कि मित्र की तरह उनके अच्छे मार्गदर्शक रहे.

मिलनसार, निश्छल व्यक्तित्व के धनी

सर्वोदय प्रेस सर्विस से जुडे कुमार सिद्धार्थ ने कहा कि पुष्‍पेंद्र पाल सिंह के न रहने से पत्रकारिता, विचार और लेखन के स्वर्णिम युग का अवसान हो गया है। पुष्‍पेंद्र पाल सरल, मिलनसार और आकर्षक व्‍यक्तित्‍व के धनी थे। सप्रेस की विकास यात्रा में उनकी भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। वर्ष 2004 में सप्रेस के संस्‍थापक संपादक महेंद्रभाई के प्रथम पुण्‍य स्‍मरण के मौके पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्‍वविद्यलय के सहयोग से आयोजित आंचलिक पत्रकारों की दो दिवसीय कार्यशाला में शिद्दत से जुटे रहे और मार्गदर्शन प्रदान किया था। उनकी स्‍मृतियां अमिट है। ऐसे मिलनसार, निश्छल व्यक्तित्व के धनी प्रो. सिंह की आत्मा को प्रणाम।    

प्रो. पुष्‍पेंद्र पाल सिंह को चाहने वाले अनेक पत्रकारों, समााजिक कार्यकर्ताओं, विद्यार्थिनों ने उनके व्‍यक्तित्‍व व कृतित्‍व पर भाव व्‍यक्‍त किये। वरिष्‍ठ पत्रकार देवप्रिय अवस्‍थी, राकेश दीवान, मुकेश तिवारी, हरीश पाठक, सुरेश तोमर, आशीष महर्षि, प्रशांत दुबे, रोली शिवहरे, स्‍वदेशसिंह राजवानी सहित सैकडों व्‍यक्तियों ने भावांजलि दी है। 

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