गांधी विचार के प्रकाश स्तंभ थे – पी. गोपीनाथन नायर

पी. गोपीनाथन नायर के निधन पर गांधी संस्‍थाओं ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि

तिरुवनंतपुरम । गांधीवादी विचारक, स्वतंत्रता सेनानी और पद्मश्री से सम्मानित गांधी शांति प्रतिष्ठान के आजीवन सदस्य कार्यकर्ताओं के अंतिम स्तम्भ, सर्वोदय परिवार के वरिष्ठ साथी, स्वतंत्रता सेनानी, भूदान कार्यकर्ता, मृदुभाषी श्री पी गोपीनाथन नायर 5 जुलाई, 2022 को शताब्दी को छूने से दो दिन पूर्व इस संसार से विदा हो गए। 100 साल की अपनी लंबी जिंदगी में श्री नायर ने महात्मा गांधी, संत विनोबा और लोकनायक जयप्रकाश के साथ चलते हुए समाज को जोड़ने और इंसानों को साथ लाने का ही काम किया। गांधीवादी विचारों और मूल्यों के लिए प्रसिद्ध नायर कई दशकों से दक्षिणी राज्य के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में मौजूदगी रखते थे। गोपीनाथन नायर के परिवार में पत्नी सरस्वती अम्मा, पुत्र एम. पद्मनाभ पिल्लई और पुत्री केपी जानकी अम्मा हैं।

श्री नायर ने अपने जीवन सफर में सर्वोदय आंदोलन और देश की कई प्रतिष्ठित रचनात्‍मक संस्‍थाओं में विभिन्‍न भूमिका में रहकर गांधी विचार के प्रसार में अपना अमूल्‍य योगदान दिया। केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के भूतपूर्व अध्यक्ष, सर्व सेवा संघ के भूतपूर्व अध्यक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान के आजीवन सदस्य, केरल गांधी स्‍मारक निधि के संचालन आदि के तौर पर श्री नायर ने वर्षों तक अपनी सेवाएं दी।

7 जुलाई, 1922 को नट्टीकारा, त्रिवेंद्रम, केरल में पिताश्री एम पद्मनाभ पिल्लै एवं माता के पी जानकी अम्मा के कोख से जन्मे बच्चे का नाम श्री पी गोपीनाथन नायर हुआ। नायर ने अपने कॉलेज के दिनों में स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की थी। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए जेल में डाल दिया गया था। युवावस्था से ही महात्मा गांधी के उत्साही प्रशंसक और अनुयायी, नायर को त्रावणकोर रियासत की अपनी यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्‍मा गांधी से मिलने का मौका मिला था। बाद में उन्होंने गांधीवादी विचारधाराओं के प्रचार के लिए देशभर में यात्राएं की थीं।

नायर ने आचार्य विनोबा भावे के नेतृत्‍व में ऐतिहासिक भूदान आंदोलन में भाग लिया और कई वर्षों तक गांधीजी के सेवाग्राम आश्रम के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। अपनी बढ़ती उम्र के बावजूद नायर कुछ समय पहले तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय थे। केरल में सांप्रदायिक तनाव के दौरान शांति सुनिश्चित करने में नायर ने अहम भूमिका निभाई। 2002 में कई लोगों की हत्या के कारण सांप्रदायिक तनाव के बाद कोझीकोड जिले के मराड में शांति लाने की उनकी पहल की व्यापक रूप से सराहना की गई थी। राष्ट्र ने उन्हें 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्‍हें जमनालाल बजाज पुरस्‍कार से भी सम्‍मानित किया गया था।  

त्रावणकोर विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक नायर ने  छात्र रहते हुए भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। 1944 में, त्रिवेंद्रम स्टूडेंट सेटलमेंट, आश्रम छात्रावास का संचालन किया, जिसमें 35 कॉलेज छात्र रहते थे और वे रचनात्मक आंदोलन के लिए काम करते थे।

1946-47 के दौरान केरल गांधी स्मारक निधि के मुख्य तत्व प्रचारक के रूप में कई केंद्रों का संचालन किया और छात्रों और तत्व प्रचार कार्यकर्ताओं के लिए अध्ययन पाठ्यक्रम संचालित किया। वे केरल के शुरुआती भूदान योजना कार्यकर्ताओं में से एक थे। 1989 में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष मनोनीत किये गए।

श्री नायर ने शांति सेना के माध्यम से शांति को बढ़ावा देने के क्षेत्र में प्रभावी ढंग से काम किया। विशेषकर 1970 में किलिमनूर क्षेत्र में नक्सली हिंसा का मुकाबला, तेलीचेरी और उसके आसपास हिंदू-मुस्लिम दंगा, 1971 में बांग्लादेश शरणार्थी शिविरों में मुक्ति-वाहिनी की मदद से भारत के लिए समझ और मित्रता की भावना पैदा करने के लिए, पंजाब में सिखों और हिंदुओं के बीच तनाव के दौरान  और 1971-1976 के दौरान कुट्टनाड शांति परियोजना के हिस्से के रूप में उनका उल्‍लेखनीय योगदान रहा।

उनके निधन पर देश की रचनात्‍मक व गांधीवादी संस्‍थाओं ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।  गांधी शांति प्रतिष्‍ठान के अध्‍यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि यह वाकई दुखद और दर्दनाक है। वे सचमुच एक प्रकाश स्तंभ थे। केंद्रीय गांधी स्‍मारक निधि के मंत्री एवं गांधी भवन न्‍यास, भोपाल के अध्‍यक्ष संजय सिंह ने श्रद्धांजलि व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि नायरजी ने आजीवन गांधीवादी मूल्यों और सिद्धांतों को आत्मसात किया था। वे हमेशा गांधीवादी आंदोलनों के प्रेरणा स्रोत रहेंगे। उनके निधन पर सर्व सेवा संघ, कस्‍तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्‍मारक ट्रस्‍ट, विसर्जन आश्रम, सर्वोदय प्रेस समिति, इंदौर, मध्‍यप्रदेश गांधी स्‍मारक निधि सहित अनेक रचनात्‍मक संस्‍थाओं ने श्रद्धासुमन अर्पित किये है।   

समझदार प्रेरक मौन साधक

गांधी शांति प्रतिष्‍ठान से जुडे रहे रमेश चंद शर्मा ने श्री गोपीनाथन नायर के व्‍यक्तित्‍व औश्र कृतित्‍व की चर्चा करते हुए बताया कि बचपन में गांधी जी के दर्शन कर अपने को सौभाग्यशाली मानने वाले, संत बाबा विनोबा भावे के काम में जुटने वाले रचनात्मक कार्यकर्ता बने श्री गोपीनाथन नायर ने जब यह राह पकड़ी तो पीछे मुड़कर नहीं देखा, चाहे कितने भी झंझावात आए।

भगवान की भूमि केरल में गांधी परम्परा के अनेक सशक्त सक्रिय साथियों का एक व्यापक परिवार रहा है। वायकोम सत्याग्रह, शांति सेना की घोषणा, पहले शांति सैनिकों की नियुक्ति का स्थल केरल रहा है। शांति सेना की स्थापना 23 अगस्त,1957 को मंजेश्वरम्, केरल में बाबा विनोबा भावे ने केरल यात्रा के अंतिम दिन की थी तब आठ लोगों ने संकल्प लिया था। सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह आत्मशक्ति प्रधान है, भौतिक प्रधान नहीं। आत्मशक्ति के साथ निर्भय होकर ही हम इनको अपना सकते हैं। परस्पर विश्वास, प्रेम का भंडार बनेंगे। न डरेंगे, न डराएंगे। निष्पक्ष, निर्वैर, निर्भय बनेंगे।  दुश्मन कोई नहीं। सभी से प्रेम भाव। कत्ल, क्रूरता, कायरता कदापि नहीं। यह मानव एवं समाज के लिए घातक है। इनसे बचना है। कानून से भी ऊपर उठकर अगर हम करुणा का काम करेंगे, कदम उठाएंगे तो नया समाज बन सकता है।

इस परम्परा का असर भगवान की भूमि केरल में कमोबेश यहां के कार्यकर्ताओं तथा रचनात्मक कार्यों में झलकता है। गोपीनाथन जी भी इसी परम्परा के वाहक रहे। साम्प्रदायिक सामाजिक सौहार्द सदभावना शांति के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केरल में उनके काम को लंबे समय तक याद किया जाएगा। ऐसे सक्रिय समझदार प्रेरक मौन साधक का जाना एक रिक्तता पैदा करता है।

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