नर्मदा बचाओ आंदोलन की जुझारु कार्यकर्ता कपिला बहन नहीं रही। उनका निधन 26 अक्‍टूबर 2020 को हो गया। सरदार सरोवर बाँध की केवड़िया कॉलोनी निर्माण से किए गए विस्थापन के खिलाफ वे अंतिम दम तक लड़ती रही जिसमें उनके परिवार का पूरा सहयोग था। उनका जुझारुपन क्षेत्र और आंदोलन के लिए मिसाल था।

उनका परिवार सरदार सरोवर परियोजना के सबसे पहले विस्थापितों में शामिल था। बाँध कर्मचारियों के लिए निर्मित केवड़िया कॉलोनी से प्रभावित 6 गाँवों में केवड़िया, कोठी, गोरा, नवागाम, लिमड़ी के अलावा उनका गाँव वाघड़िया भी शामिल था। सरदार सरोवर परियोजना के खिलाफ पहला संघर्ष भी इन्हीं गाँवों में शुरु हुआ था। इन गाँवों को प्रभावितों को बाँध प्रभावित नहीं माना गया है। इनकी लड़ाई इन्हें बाँध प्रभावितों के समान लाभ दिए जाने की है।

नब्बे के दशक में इन गाँवों का संघर्ष मैने देखा है। इस संघर्ष की ताकत का राज उसमें शामिल महिला शक्ति रही है। कोठी गाँव की स्व. बली बहन, केवड़िया की स्व. जसी बहन, गोरा गाँव की अंबा बहन और व़ाघड़िया की कपिला बहन की चौकड़ी का जुझारुपन हैरत में डालने वाला था। यह चौकड़ी न सिर्फ मुखर थी बल्कि निडरता ऐसी थी कि पुलिस भी इनसे खौफ खाते थे।

शायद 1994 की सर्दियों की बात है। एक दिन पता चला कि केवड़िया के पथिक आश्रम में सामाजिक संस्थाओं के लोग आए हैं जो सरदार सरोवर प्रभावितों को पुनर्वास के लिए राजी करने का काम करेंगें। कॉलोनी प्रभावित गाँवों के लोग वहाँ जमा हुए और उन्हें बताया कि जिस जगह पर यह कॉलोनी बनी है उससे दशकों पहले उजाड़े गए परिवारों का ही यदि सरकार ने अभी तक पुनर्वास नहीं किया तो बाँध प्रभावितों का पुनर्वास वह कैसे करेगी। पहले हमारे पुनर्वास के लिए सरकार राजी करो। गर्मागर्म बहस के बीच पुलिस भी आ गई। पुलिस ने बीचबचाव करने की कोशिश तो यह चौकड़ी पुलिस को धकियाती हुई पथिक आश्रम के गेट तक छोड़ आई। यह देखकर बाकी लोग भी जगह ढूँढ कर वहाँ से निकल लिए।

इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन मैं अरुंधती ताई के साथ केवडिया में कहीं जा रहा था तब केवड़िया के पुलिस इंस्पेक्टर ने हमें रास्ते में रोका और चर्चा करने के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया और मुझे पथिक आश्रम की घटना पर दर्ज केस में गिरफ्तार कर लिया। मुझे जेल भिजवाने की पूरी की थी। लेकिन, थोड़ी ही देर में इसी चौकड़ी के साथ सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए। उनका कहना था कि वे सब भी उस घटना में शामिल थे इसलिए उन सबको भी गिरफ्तार किया जाए। चूँकि उस समय मैं थाने के अंदर था इसलिए इनकी उपस्थिति के कारण पुलिस की घबराहट को मैने बहुत अच्छे से महसूस किया। अंत में किसी ओर को गिरफ्तार करने के बदले मुझे छोड़ना पड़ा।

कपिला बहन का बहुत ही अल्प अस्वस्थता के बाद इस तरह बिछुड़ जाना मेरे जैसे कई कार्यकर्ताओं के लिए निजी आघात है। कपिला बहन-प्रभु भाई का घर हमारे लिए अपने घर समान था। आंदोलन का कार्यालय उनके घर से ही चलता था। इसी तरह बली बहन का घर भी हमारा अपना घर रहा है।

इस चौकड़ी की तीसरी कोण कपिला बहन का इस समय साथ छोड़ कर चले जाना आंदोलन के लिए भी अपूरणीय क्षति है। ऐसे समय में जब सरदार पटेल की मूर्ति स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के लिए पर्यटन बढ़ाने के नाम पर 52 अन्य गाँवों को भी उजाड़ने की योजना है तब तो उनकी निडरता और जुझारुपन की बहुत जरुरत है।

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