स्‍मृति शेष : श्रध्‍दांजलि

सुरेश भाई

महात्मा गांधी, विनोबा भावे एवं जयप्रकाश नारायण के विचारों को आत्मसात करने वाले समाजसेवी एवं सर्वोदयी नेता बिहारी लाल नागवाण ने गांधीवादी परंपरा को आगे बढ़ाने के साथ समाज में व्याप्त कुरूतियों को उखाड़ फेंकने के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। बिहारी लाल पहाड़ की समझ रखने वाले समाजसेवी, शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कामों के लिए जाने जाते हैं। दलित संघर्ष को रचनात्मक और शैक्षिक आयाम देने में बिहारी लाल का अहम योगदान रहा है। उन्होंने विनोबा भावे, आशा देवी आर्यनायकम, निर्मला गाँधी, राधाकृष्णन, सुन्दरलाल बहुगुणा से आशीर्वाद लेकर सन् 1977 में अपने गाँव में पहुँच कर बिहारी लाल लोक जीवन विकास भारती की स्थापना की। इसके माध्‍यम से वे आजीवन अनेक रचनात्‍मक कार्यों में संलग्‍न रहे।

उत्तराखण्ड के समाज सेवकों की अग्रिम पंक्ति में बिहारी लाल का नाम उल्‍लेखनीय है। देश के सर्वोदय कार्यकर्ताओं के बीच में इनकी विनम्रता, सरल स्वभाव और उल्लेखनीय समाज कार्य को बहुत आदर भाव से देखा जाता है। युवावस्था में ही सुन्दरलाल बहुगुणा, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, ई0 डब्लू0 और आशा देवी आर्यनायकम, राधाकृष्णन, ठाकुरदास बंग, प्रेम भाई, निर्मला गाँधी, सरला बहन, कनकमल गाँधी, हेमवती नन्दन बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, सरला बहन आदि से सम्पर्क हो गया था। ऐसे रचनात्‍मक कार्यकर्त्‍ता का पिछले दिनों  (18 मार्च 2021) को निधन हो गया है।

8 नवम्बर 1942 में टिहरी के रगस्या गांव में पैदा हुये बिहारी लाल पिता भरपुरु नगवाण ने सुन्दरलाल बहुगुणा, बहादुर सिंह राणा, धर्मानन्द नौटियाल जैसे प्रसिद्ध सर्वोदय नेताओं के साथ सत्‍तर के दशक तक डोला पालकी, दलितों को मंदिर प्रवेश, शराबबन्दी आदि सामाजिक कार्यों में अहम भूमिका निभाई है। बचपन से पिता के इस काम से प्रेरित होकर बिहारी लाल देश के सर्वोदय आन्दोलन से जुड़े लोगों के साथ शामिल हो गये थे। महात्मा गाँधी के सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान, वर्धा (महाराष्ट्र) में नई तालीम की शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त वहां पर अध्यापन का कार्य भी किया है। इसके बाद वेड़छी विद्यापीठ, गुजरात में शिक्षक पद पर रहे। विभिन्न सर्वोदय संगठनों के बीच शिक्षण-प्रशिक्षण, रचनात्मक कार्यक्रमों से लेकर विनोबा भावे के भूदान-ग्रामदान के आन्दोलन के कार्यकर्ता रहे है।

सन् 1971-72 में गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली से जुड़कर राधा कृष्णन व प्रेम भाई के सहयोग से बंगलादेश की आजादी के समय मिदनापुर-किशोरीपुर में एक लाख शरणार्थियों के राहत शिविर को भोजन, निवास शिक्षा और स्वास्थ्य की विशेष सुविधाएं इन्होंने उपलब्ध करवायी। शरणार्थियों के प्रत्येक परिवार ने सुन्दर कीचन गार्डन बनाया, जिसकी सब्जी मिदनापुर में बिकती थी। यहां पर सामुदायिक शौचालय और स्वच्छता का इतना उच्च स्तर का काम था कि हर रोज मीडिया में इसके समाचार छपते रहते थे। जब बंगलादेश में शान्ति स्थापित होने लगी तो शरणार्थियों को घर तक पहुँचाने का काम भी इनकी टीम ने किया है। शरणार्थियों की सेवा के बाद बनवासी सेवाश्रम, मिर्जापुर में लम्बे समय तक नई तालीम का काम किया है।

जून 1975 में जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति में शामिल होकर बिहार के पलामू जिले में एक महिने से अधिक समय तक साथियों के साथ जेल में रहे है। बाद में सम्पूर्ण क्रान्ति का संदेश देश भर में पहुंचाने के लिए कई स्थानों की यात्राएं की है। जब उन्होंने विद्यार्थी जीवन में गांव छोड़कर सेवाग्राम पढ़ाई के लिए पहुँचे थे, तभी से उनके मन में यह सोच बनी रहती थी कि वह अपने गांव लौटकर नई तालीम के माध्यम से बापू के रचनात्मक कार्यो को आगे बढ़ाने का काम करेंगे। जब उन्हें गांव लौटने का मौका मिला तो उन्होंने विनोबा भावे, आशा देवी आर्यनायकम, निर्मला गाँधी, राधाकृष्णन, सुन्दरलाल बहुगुणा से आशीर्वाद लेकर सन् 1977 में अपने गाँव लौट आये। घर में पहुँचने पर गाँव के लोग उन्हें वर्षों बाद अपने बीच पाकर बहुत अधिक खुश हुए थे। उन्होंने गाँव के लोगों को साथ लेकर लोक जीवन विकास भारती की स्थापना की। यह स्थान भिलंगना ब्लाक में धर्म गंगा, बाल गंगा और मेड नदी के संगम पर है। यहां पर सर्वप्रथम बापू की बुनियादी तालीम चलाने के लिए एक केन्द्र का निर्माण किया। इस केन्द्र में प्रारम्भ से ही अब तक हर वर्ष लगभग 50-100 छात्र-छात्राएं नई तालीम की शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं। बड़े बाँधों के विकल्प के रूप में मेड़ नदी पर 40 किलोवाट की छोटी पनबिजली का निर्माण करवाया। जिससे रात को उजाला मिलने के अलावा तेलघानी, लेथ मशीन, काष्टकला वेल्डिंग, लोह कला आदि कार्यो में जल उर्जा का विकास करके आम जनता को सुविधायें दी है।

पानी से चलने वाले इस सफल प्रयोग के बाद अगुंडा और गेवांली गांव में 50-50 किलोवाट की छोटी पनबिजली बनायी गयी। ये छोटी पनबिजली 90 के दशक में ऐसे वक्त में बनी जब टिहरी बाँध का विरोध चल रहा था। उस समय बुढ़ाकेदार जाकर कई मीडिया के साथी टिहरी बांध के विकल्प के रूप में इनकी छोटी पनबिजली का जीता-जागता उदाहरण अखबार की सुर्खियों में खूब छपता रहता था। साथ ही वे टिहरी बांध विरोध के धरना स्थल पर जाकर विरोध करते रहे हैं। गाँव-गाँव में ग्राम वन व्यवस्था को मजबूत करने के लिए वन चौकीदार की प्रथा को पुनःजीवित करके दर्जनों गांव में चारा पत्ती के लिए बांज के जंगल विकसित किये हैं। नई तालीम के विद्यार्थियों को शिल्पकला से जोड़ने के लिए जैविक खेती, उद्यानीकरण, काष्टकला, लौह कला, कताई-बुनाई, पशुपालन आदि सिखाया गया है। क्षेत्र में कई लोग पढ़ाई के साथ शिल्प कला को सीखकर आत्म निर्भर हुए हैं। जिस समय  उन्‍होंने गांव में काम की शुरुआत की तो सबसे बड़ी समस्या साथ में रह रहे कार्यकर्ताओं की आजीविका के लिए आर्थिक स्त्रोत जुटाना था। इसके लिए  उन्‍होंने सड़क, नहर आदि निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया और उनके रोजगार के लिए श्रम संविदा सहकारी समिति बनाकर ठेकों का सीधा लाभ मजदूरों को दिलवाया और स्वयं भी मजदूरी करके लोगों की सेवा के लिए पैसे कमाये। भिलंगना ब्लॉक के दूरस्थ गाँव में घास-फूस वाले मकानों की छतों को पटाल की छतों के रूप में रूपान्तरित किया है। जिससे महिलाओं को पीठ के बोझ से मुक्ति मिली है। क्योंकि घरों की छत पर लगने वाली सलमा घास के लिए महिलाओं को तीखे व खतरनाक चट्टानों से गुजरना पड़ता था। कई महिलाएं पहाड से गिरकर मर जाती थी। उत्तराखण्ड में महिला समाख्या को स्थापित करके सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिलाया और महिला अधिकारों की आवाज बुलंद करवायी है।

चैत्र मास में दलित महिलाओं का घर-घर नाचना भी इन्हीं के प्रयासों से बन्द हुआ था और उन्हें श्रम संविदा सहकारी समिति से जोड़कर रोजगार उपलब्ध करवाया है। चिपको आन्दोलन के दौरान बाल गंगा और धर्म गंगा के जल ग्रहण क्षेत्रों के हरे वृक्षों को बचाने के लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तर्ज पर वन काटने वाले ठेकेदारों व मजदूरों को स्थानीय बाजार व गांव से राशन-पानी आदि दैनिक आवश्यकताओं पर रोक लगायी गयी थी जिसके कारण वन काटने वाले मजदूर उल्टे पांव वापस गये। इस तरह के अनेक काम हैं जो बिहारी लाल के नेतृत्व में हुए, जिसके लिए उन्होंने कभी न तो पुरस्कार व अपने सम्मान के लिए फार्म भरवाया और हमेशा प्रचार-प्रसार से दूर रहकर मौन सेवक व कर्मयोगी की तरह भूमिका निभाते रहे हैं।

बिहारी लाल स्मृति समिति का गठन

31 मार्च को प्रसिद्ध समाजसेवी बिहारी लाल के निधन के तेरहवीं पर लोक जीवन विकास भारती, बूढ़ाकेदारनाथ में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बिहारी लाल स्मृति समिति का गठन किया। इस समिति के द्वारा उनके जीवन और संघर्ष के विषय में साहित्य निर्माण किया जायेगा,  इसके साथ हर वर्ष 2-3 सामाजिक कार्यकर्ताओं को बिहारी लाल सर्वोदय सम्मान दिया जायेगा। इस सभा में यह भी निर्णय हुआ कि उनके द्वारा किये गये रचनात्मक कार्यक्रमों को प्रदर्शित करने के लिये एक संग्रहालय का निर्माण किया जायेगा। यहां बहुत लम्बे समय से चल रहे बुनियादी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये देश के कई सगंठनों से सहयोग की अपील की जा रही है। बिहारी लाल स्मृति समिति का अध्यक्ष सर्वोदय कार्यकर्ता श्री बावन सिंह विष्ट को बनाया गया। जिन्होंने बिहारी लाल जी के साथ लम्बे समय तक समाजसेवा की है और दस वर्ष तक अपने गांव के प्रधान भी रहे है। इसके साथ ही इन्होंने बुनियादी शिक्षा बिहारी लाल जी के मार्गदर्शन में प्राप्त की। इनके साथ ही समिति की सचिव श्रीमती अंजू छनवान को बनाया गया, इनकी शिक्षा-दीक्षा लोक जीवन विकास भारती में हुई है और वर्षों तक सिलाई-बुनाई के प्रशिक्षक के अलावा बुनियादी शिक्षा केन्द्र में अध्यापन कार्य किया है और ग्राम निर्माण, और ग्राम संगठन के काम से जुड़ी रही।

बिहारी लाल स्मृति समिति का निर्माण सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई और जय शंकर की पहल से गठित की गई। इन्होंने बिहारी लाल जी के कामों पर विस्तारपूर्वक चर्चा करने के बाद कहा कि उनके निधन से समाज की अपूरणीय क्षति हुई है, उसकी भरपाई के लिये वर्तमान समय में उनके रचनात्मक कार्यो को सतत् रूप से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पहाड़ की पानी, जवानी और किसानी के संरक्षण के लिये किये गये कार्यक्रम आज प्रेरणा के स्रोत बन गये है। बैठक में प्रत्येक वर्ष बिहारी लाल की पुण्यतिथि को दिव्यांग स्वास्थ्य शिविर का आयोजन करेगें और विद्यार्थियों को बैग, पाठ्य सामग्री वितरण करेगें और वे बिहारीलाल पर लिखी जा रही पुस्तक की 100 प्रतियां छापेंगे।

बिहारी लाल के व्‍यक्तित्‍व कृतित्‍व पर अनेक लब्‍ध प्रतिष्ठित व्‍यक्तियों में जलपु़रूष राजेन्द्र सिंह, रमेश शर्मा, राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, विधायक शक्ति लाल शाह, जिला पंचायत अध्यक्ष सोना सजवाण, चिपको नेता चंडी, प्रसाद भटट, राधा बहन, सुन्दरलाल बहुगुणा, विजय जडधारी, धूमसिंह नेगी, मनोज पाण्डे ने अपनी संवेदना प्रकट करते हुए उनके व्‍दारा किये गये रचनात्‍मक कार्यों को याद किया।  उत्‍तराखंड के राज्यपाल बेबीरानी मौर्य, मुख्यमन्त्री तीरथ सिंह रावत के अलावा उत्तरप्रदेश,  राजस्थान, गुजरात, उडीसा, दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्‍ट्र , मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के सर्वोदय कार्यकर्ताओं ने भी अपने श्रध्‍दा सुमन अर्पित कर सभाएं की हैं। (सप्रेस)

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