भारत डोगरा

रामायण के नायक राम के जीवन का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि उनका अधिकतर समय अत्याचार के विरुद्ध लड़ते हुए बीता। अत्याचारी राक्षसों के विरुद्ध संघर्ष के पहले चरण में, जहां शत्रु बहुत बलशाली नहीं था, राम ने केवल अपने छोटे भाई लक्ष्मण की सहायता से ही उनका सामना किया। दूसरे चरण में, जब अत्याचारी राक्षसों की शक्ति बहुत अधिक थी, राम व लक्ष्मण ने वनवासियों व उपेक्षित श्रेणी के लोगों को संगठित कर संगठन के इस बल से शक्तिशाली शत्रु का सामना किया व उसे पराजित कर एक बड़े भू-भाग को उसके अत्याचार से मुक्त किया।

रामायण में जो अनेक संदेश हैं उनमें अत्याचार के विरुद्ध कमजोर तबके का संगठित होकर लड़ने का संदेश महत्वपूर्ण है। अभिजात वर्ग के न्याय प्रिय लोगों से अपेक्षा की गई है कि इस लड़ाई में वे कमजोर पक्ष का साथ दें, चाहे कष्ट सहना पड़े। जरूरत हो तो वे स्वयं जंगल-जंगल घूमकर संगठन करें, अत्याचारियों से युद्ध की तैयारी में सहयोग दें।

यह याद करना आवश्यक है कि करोड़ों लोगों के प्रिय धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ में सांप्रदायिकता के विरोध में स्पष्ट संदेश दिया गया है। श्रीराम का जो चरित्र बताया गया है, उसमें बार-बार कहा गया है कि वे दुख मिटाने वाले व करुणा के सागर थे। उनके चरित्र का जो वर्णन किया गया है उससे स्पष्ट हो जाता है कि जन साधारण के प्रति किसी प्रकार के भेदभाव, बैर, नफरत की भावना उनके लिए असहनीय थी।

उनके लिए गरीब नवाज शब्द का उपयोग भी हुआ है और दीनदयाल शब्द का भी। उन्हें “क्रोध और भय का नाश करने वाले तथा सदा क्रोध रहित” कहा गया है। उनके नाम को भय का नाश करने वाला और बिगड़ी बुद्धि को सुधारने वाला बताया गया है। उनके नाम को ‘उदार नाम’ और ‘कल्याण का भवन’ भी कहा गया है। सुंदरकांड में उनके स्वभाव को ‘अत्यंत ही कोमल’ बताया गया है।

उत्तरकांड में नगरवासियों की सभा में गुरुजनों, मुनियों की उपस्थिति में कहे राम के उपदेश वचन दिये गए हैं। इनमें बताया गया है कि भक्त में कौन से गुण आवश्यक हैं व कौन सी बातों से भक्त को दूर रहना चाहिए। राम कहते हैं, “कहो तो, भक्ति मार्ग में कौन सा परिश्रम है? इसमें न योग की आवश्यकता है, न यज्ञ, तप, जप और उपवास की। (यहां इतनी ही आवश्यकता है कि) सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखें।”

भक्त किन बुराईयों से दूर रहें, इस बारे में स्पष्ट कहा गया है। “न किसी से वैर करें, न लड़ाई झगड़ा करें।” सबसे महत्वपूर्ण तो इससे अगली चौपाई है जिसमें राम कहते हैं, “संतजनों के संसर्ग (सत्संग) से जिसे सदा प्रेम है, जिसके मन में सब विषय, यहाँ तक कि स्वर्ग और मुक्ति तक (भक्ति के सामने) तृण के समान हैं, जो भक्ति के पक्ष में हठ करता है, पर (दूसरे के मत का खंडन करने की) मूर्खता नहीं करता तथा जिसने सब कुतर्कों को दूर बहा दिया है।” इस तरह भक्त की परिभाषा की गई है।

अयोध्याकांड में भी राम के भक्तों की परिभाषा इसी भावना के अनुकूल की गई है- ‘राम भगत परहित निरत पर दुखी दयाल’ अर्थात् राम के भक्त सदा दूसरों के हित में लगे रहते हैं, वे दूसरे के दुख से दुखी और दयालु होते हैं।

सबसे बड़ा धर्म क्या है और सबसे बड़ा अधर्म क्या है, इसके विषय में तुलसीदास जी ने लिखा है, – ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई। पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।‘ अर्थात् दूसरे के हित के समान धर्म नहीं है। स्पष्ट है कि जो नफरत की विचारधारा फैलाकर दंगे करवा रहे हैं – ऐसे दंगे जिनमें हजारों लोगों को कष्ट होता है – वे गोस्वामी जी की मान्यता के अनुसार सबसे बड़ा अधर्म कर रहे हैं।

अन्यत्र तुलसीदास लिखते हैं – ‘सियाराम मैं सब जग जानी। करहुं प्रणाम जोर जुग जानी।‘ अर्थात् सीता और राम को मैंने समस्त प्राणी मात्र में जाना है, उसी प्राणी मात्र को मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। जो सीताराम के नाम का उपयोग किसी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए करते हैं, उन्हें ये शब्द ध्यान से पढ़ लेने चाहिए।

मानस में रामराज्य के विषय में बताया गया है कि विद्या व ज्ञान-अर्जन के बहुत अनुकूल वातावरण था व अनेक व्यक्ति भोग-विलास से दूर चिन्तन-मनन में समय लगाते थे, साथ ही सामाजिक दृष्टि से उपयोगी कार्य भी करते थे। राम राज्य के समय जिन व्यक्तिगत गुणों पर गोस्वामी जी ने बल दिया वे हैं – दंभ रहित होना, धर्मपरायण, धूर्तताहीन होना, कृतज्ञता, उदारता, परोपकारी होना।

बाल्मीकि रामायण में एक अन्य प्रसंग है जब राम स्वयं राजा न होते हुए भी अपने भाई भरत से (जिनके लिए वे राज्य छोड़ आए थे) इस बारे में बात करते हैं कि नीतिगत राजा कैसा होना चाहिए व कैसा नहीं होना चाहिए। एक जरूरी बात यह बताई है कि यदि धनी और गरीब में कोई विवाद छिड़ा हुआ हो व वह राज्य के न्यायालय में निर्णय के लिए आए, तो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि मंत्री धन आदि के लोभ को छोड़कर इस मामले पर विचार करें। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि निरपराध व्यक्ति को कभी दंड न मिले।  

रामायण के नायक राम के जीवन का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि उनका अधिकतर समय अत्याचार के विरुद्ध लड़ते हुए बीता। अत्याचारी राक्षसों के विरुद्ध संघर्ष के पहले चरण में, जहां शत्रु बहुत बलशाली नहीं था, राम ने केवल अपने छोटे भाई लक्ष्मण की सहायता से ही उनका सामना किया। दूसरे चरण में, जब अत्याचारी राक्षसों की शक्ति बहुत अधिक थी, राम व लक्ष्मण ने वनवासियों व उपेक्षित श्रेणी के लोगों को (जिन्हें रामकथा में वानर व रीछ आदि दिखाया गया है) संगठित कर संगठन के इस बल से शक्तिशाली शत्रु का सामना किया व उसे पराजित कर एक बड़े भू-भाग को उसके अत्याचार से मुक्त किया।

बहुत कम उम्र में राम व लक्ष्मण राक्षसों द्वारा अत्याचार की खबर सुनकर सब तरह की मोह-माया छोड़ वनों की ओर निकल पड़ते हैं, उससे बाल्मीकि रामायण व रामचरितमानस इन ग्रंथों में वह प्रतिष्ठित किया गया है कि अत्याचारों का सामना व उनका दमन करना इतना आवश्यक काम है कि उसके लिए आवश्यकता पड़ने पर राजा अपने सुकुमार पुत्रों की जान भी खतरे में डाल उन्हें वन भेज सकता है।

राम ने सुग्रीव को राक्षसों के विरुद्ध लड़ाई में अपना साथी बनाया व युद्ध के लिए दूर-दूर से वानर, रीछ, लंगूर सैनिक एकत्र हुए। ध्यान रखें कि सुग्रीव के पहले ही परिचय में बाल्मीकि रामायण में उन्हें बन्दर नहीं अपितु वानर जाति का पुरुष बताया है जो वीर होने के बावजूद राक्षसों की केन्द्रित शक्ति व वैभव के आगे बेबस व दबे हुए लोगों का जीवन बिता रहे थे। समाज के इसी उपेक्षित तबके से राम ने ऐसी सेना संगठित की जिसने उस समय की सबसे शक्तिशाली व साधन सम्पन्न सेना को हराया।

इस सन्दर्भ में इतिहासकार कपिल कुमार का एक अध्ययन उल्लेखनीय है। यह अध्ययन ‘सांचा’ पत्रिका के जून-जुलाई 1988 अंक में प्रकाशित हुआ था। इसमें बताया गया है कि अवध क्षेत्र में अंग्रेज शासन के खिलाफ किसानों के संगठन में बाबा रामचंद्र ने रामचरितमानस का एक शोषण विरोधी ग्रंथ के रूप में उपयोग कैसे किया। पर साथ ही कपिल कुमार ने यह बात स्पष्ट की है कि बाबा ने किसानों के सम्मुख आर्थिक पहलुओं को सर्वप्रथम रखा, उन्हें एक वर्ग के रूप में संगठित करने का प्रयास किया और रामायण का प्रयोग उन तक पंहुचने के लिए किया।

इतिहासकार कपिल कुमार के अनुसार “बाबा रामचन्द्र ने रामायण को भक्ति के लिए इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि इसका उपयोग उन्होंने तत्कालीन सामाजिक ढांचे के शोषण-मूलक चरित्र को बेनकाब करने और उसका रूपांतरण करने के लिए किया। बाबा रामचंद्र के लिए तो जमींदार, पूंजीपति, सूबेदार और जनता का शोषण करने वाली सारी ताकतें ही राक्षस थीं। उन्होंने अगर रामायण को संघर्ष के लिए किसानों को लामबद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया तो उनका यह संघर्ष सिर्फ ब्रिटिश शासकों के ही खिलाफ नहीं था बल्कि देशी उत्पीड़कों के खिलाफ भी था।” अपने इन प्रयासों में बाबा रामचन्द्र कितने सफल रहे, इसका पता तो प्रतापगढ़ के डिप्टी कमिश्नर की इस रिपोर्ट से लगता है कि बाबा रामचन्द्र “चुम्बक की भांति एक आकर्षण बन गए थे जिनकी ओर बड़ी संख्या में लोग खिंचे आते थे।”

यह किसी भी सच्चे हनुमान भक्त के लिए बहुत कष्ट की बात है कि सांप्रदायिक दंगों में ‘जय बजरंग बली’ का नारा लगाकर निर्दोष और असहाय लोगों पर आक्रमण किया गया। हमारी संस्कृति में वीर हनुमान की जो पहचान है वह सबसे अधिक संकट दूर करने वाले व संकट हरण करने वाले वीर की पहचान है जिसकी शरण में जाकर कमजोर और असहाय लोगों को अभयदान मिलता है, उनका संकट दूर होता है। कुछ लोगों ने ऐसे संगठन बनाये हैं जो सांप्रदायिक हिंसा में या नफरत फैलाने में हिस्सा ले रहे हैं, पर इन संगठनों के नाम में वे वीर हनुमान का नाम जोड़ने की धृष्टता कर रहे हैं। इस तरह संकट मोचन का नाम लेकर वे विपरीत काम कर रहे हैं। वीर हनुमान की दूसरी मुख्य पहचान उनकी समर्पण भावना और दृढ़ता है। एक बार जिस लक्ष्य के प्रति अपने को समर्पित किया, बड़ी-से-बड़ी कठिनाई और चुनौती आने पर भी पीछे नहीं हटे। इसी दृढ़ निश्चय और लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना ने उनसे ऐसे कठिन काम करवाये जिसकी कल्पना मात्र से अन्य वीर चिंतित हो जाते थे। इस तरह धर्मग्रन्थों में चित्रित वीर हनुमान का चरित्र मुख्य रूप से यह प्रेरणा देता है कि दूसरों को संकट से बचाओ और अपने ऐसे लक्ष्य के प्रति पूरी तरह दृढ़ निश्चय अपनाओ, चाहे कितनी ही कठिनाई क्यों न सहनी पड़े। (सप्रेस)

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भारत डोगरा
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अनेक सामाजिक आंदोलनों व अभियानों से जुड़े रहे हैं. इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साईंस, नई दिल्ली के फेलो तथा एन.एफ.एस.-इंडिया(अंग्रेजोऔर हिंदी) के सम्पादक हैं | जन-सरोकारकी पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान को अनेक पुरस्कारों से नवाजा भी गया है| उन्हें स्टेट्समैन अवार्ड ऑफ़ रूरल रिपोर्टिंग (तीन बार), द सचिन चौधरी अवार्डफॉर फाइनेंसियल रिपोर्टिंग, द पी.यू. सी.एल. अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स जर्नलिज्म,द संस्कृति अवार्ड, फ़ूड इश्यूज पर लिखने के लिए एफ.ए.ओ.-आई.ए.ए.एस. अवार्ड, राजेंद्रमाथुर अवार्ड फॉर हिंदी जर्नलिज्म, शहीद नियोगी अवार्ड फॉर लेबर रिपोर्टिंग,सरोजनी नायडू अवार्ड, हिंदी पत्रकारिता के लिए दिया जाने वाला केंद्रीय हिंदी संस्थान का गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार समेत अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया है | भारत डोगरा जन हित ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं |

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