बाबा मायाराम

समाजवाद, न्याय और समता के लिए होनेवाले संघर्षों को सोमनाथ जी ( सोमनाथ त्रिपाठी) के निधन से भारी क्षति हुई है। हाल ही में 9 अक्टूबर को कोरोना संक्रमित होने से उनका देहावसान हो गया। जब भी ऐसे संघर्ष आगे बढ़ेंगे, या उनकी कोशिशें होंगी, सोमनाथ जी याद किए जाएंगे।

मेरा उनसे करीब तीन दशक पुराना परिचय था। मेरे स्मृति पटल पर उनकी कई छवियां उभर रही हैं। बरसों पहले समता संगठन और समाजवादी जन परिषद की बैठकों कीं और हाल ही में स्वराज अभियान, जय किसान आंदोलन व स्वराज इंडिया में उनकी सक्रियता की। हम कई बार मिले और कार्यक्रमों में टकराए। उनके बीमार होने के कुछ दिन पहले ही फोन पर बात हुई थी, और मिलना तय हुआ था, जो अब कभी नहीं हो सकेगा।

सोमनाथ जी, बनारस (वाराणसी) में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से सेवानिवृ्त्त प्रोफेसर थे। लेकिन यह परिचय अधूरा है। वे एक समर्पित समाजवादी कार्यकर्ता थे। समाजवादी चिंतक किशन पटनायक के निकटतम सहयोगी थे। उनके साथ लगातार विकल्प खोजनेवाले कार्यकर्ता थे। कई संगठन, आंदोलनों व समूहों के सहयात्री थे।

सोमनाथ जी अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे। उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले के खोरमा गांव में उनका 15 अगस्त 1947 को जन्म हुआ। इसी गांव में स्कूली शिक्षा हुई। गोरखपुर, मठलार और कुशीनगर में आगे की पढ़ाई हुई। कुशीनगर में वे कालेज छात्र संघ के उपाध्यक्ष भी बने। यहां वे समाजवादी उग्रसेन के संपर्क में आए और समाजवादी विचारधारा की ओर झुकाव हुआ। काशी विद्यापीठ बनारस से इतिहास में एम.ए. किया। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आचार्य व पी.एच.डी.की। यहीं बाद में प्रोफेसर हो गए, और यहीं से सेवानिवृत्त हुए।

लेकिन वे अकादमिक दुनिया तक सीमित नहीं थे, सामाजिक व राजनैतिक जीवन में उनकी सक्रियता उल्लेखनीय थी। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में सक्रिय थे। आपातकात में उन्होंने राजनीति में गहरी दिलचस्पी ली। समाजवादी युवजन सभा, युवा जनता और फिर लोहिया विचार मंच से जुड़े। बनारस में योगेन्द्र नारायण शर्मा व चंचल मुखर्जी जैसे साथियों के साथ मिलकर कई कार्यक्रम किए व नए साथियों को जोडा। समाजवादी चिंतक किशन पटनायक से संपर्क व जुड़ाव हुआ जो अंत तक बना रहा।

वर्ष 1980 में समता संगठन बना और इसकी स्थापना में सोमनाथ जी की भूमिका थी। इस संगठन ने स्थापना के समय ही यह तय किया था कि 10 साल तक जमीनी स्तर पर काम करेंगे व चुनाव नहीं लड़ेंगे। 1995 में समाजवादी जन परिषद बनी, उसमें भी सोमनाथ जी का योगदान था। सोमनाथ जी का सामयिक वार्ता पत्रिका के प्रकाशन में भी लम्बा योगदान रहा। बनारस से सोमनाथ त्रिपाठी व चंचल मुखर्जी ही बरसों तक इसे निकालते रहे। और बाद में जय किसान आंदोलन, स्वराज अभियान व स्वराज इंडिया की स्थापना में उनका योगदान रहा। वे स्वराज इंडिया के उपाध्यक्ष थे।

सोमनाथ जी की सांगठनिक क्षमता अद्भुत थी। वे उत्साह व ऊर्जा से इस काम में लगे रहते थे। वे बोझिल बैठकों को अपनी सकारात्मक टिप्पणियों से सहज व अर्थपू्र्ण बना देते थे। वे नए नए कार्यकर्ताओं को संगठन से जोड़ते थे और उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए तत्पर व बेचैन रहते थे। इसके लिए वे घंटों फोन पर समस्याएं सुनते व उनके समाधान के लिए दूसरों को इससे जोड़ते। जैसे उनके घर की ही कोई समस्या हो। कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए साहित्य निर्माण व प्रकाशन के काम को महत्व देते थे। इस सिलसिले में हाल ही उन्होंने किशन पटनायक की बेरोजगारी, समस्या, समाधान व संगठन और राममनोहर लोहिया की नागरिक स्वाधीनता नामक पुस्तिका का प्रकाशन किया था। कुछ और प्रकाशन निकालने की तैयारी कर रहे थे। यह दोनों पुस्तिकाएं समता साथी संगम के द्वारा प्रकाशित हुई थी। समता साथी संगम, नए पुराने समाजवादियों को जोड़ने का मंच था, जिसकी पहल सोमनाथ जी ने ही की थी।

किसान आंदोलन में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। महेन्द्रसिंह टिकैत के आंदोलन के समय उन्होंने उत्तरप्रदेश में कई दौरे किए। किसान समूहों व कार्यकर्ताओं को जोड़ा और किशन पटनायक के साथ मिलकर किसान आंदोलन को व्यापक करने का प्रयास किया। टिकैत को लेकर दूसरे राज्यों में गए। हाल ही में हरियाणा व पंजाब चल रहे किसान आंदोलन की अंत तक चिंता करते रहे। स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव को अस्पताल से एक पत्र भी लिखा जिसमें किसान आंदोलन को कैसे आगे ले जाएं,इसके बारे में उनके सुझाव हैं।

आमतौर पर नेताओं के जिंदगी में सिद्धांत व व्यवहार में फर्क होता है। जो कहते हैं, व्यवहार में अमल नहीं करते। सोमनाथ जी की जीवन पारदर्शी था। उनके परिवारजन भी उनके विचारों से जुड़े थे। उनके घर कई कार्यकर्ता आते थे, कई कई दिनों तक रहते थे। सब लोग मिलकर रहते थे और उनके परिवारजनों का उसमें पूरा सहयोग मिलता था। सोमनाथ जी के मित्र चंचल मुखर्जी कहते हैं कि उनकी पत्नी निर्मला त्रिपाठी सबका ख्याल रखती थीं। उनका घर सबके लिए खुला था। यानी घर में भी समाजवाद था।

स्वराज इंडिया के अ्ध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सोमनाथ जी समाजवादी आंदोलन, लोहिया व किशन पटनायक के बीच एक सेतु थे। वे हमें उनकी वैचारिक विरासत से जोड़ते थे, उनके जाने से यह पुल टूट गया है। किशन पटनायक के युवा सहयोगी व किसान नेता लिंगराज कहते हैं कि वे संघर्ष के साथ रचनात्मक कामों में गहरी दिलचस्पी रखते थे। जीरो बजट खेती के प्रणेता सुभाष पालेकर के कई कार्यक्रम करवाए थे। किसान आंदोलन को व्यापक दृष्टि से देखते थे जिससे किसानों को लाभकारी मूल्य मिलने के साथ प्रकृति व मिट्टी पानी का संरक्षण भी हो। पर्यावरण रक्षक खेती भी हो।

कुल मिलाकर, सोमनाथ त्रिपाठी ने अपना पूरा जीवन विकल्प खोजने व उसे गढ़ने में लगाया। एक प्रोफेसर होकर भी जमीनी समाजवादी कार्यकर्ता की तरह जीवन जिया। परिवार में भी समाजवाद लाने की कोशिश की। कई संगठन, आंदोलन व संघर्षों से जुड़े रहे। संगठनों व समूहों की स्थापना की। स्वराज इंडिया में इसमें युवाओं को जोडने रात्रि पाठशाला ( अनौपचारिक) भी चलाई,जिसमें वे अपने विचार व अनुभव साझा करते थे। उनके जीवन में सादगी थी जो समता के लिए जरूरी है। अगर उन्हें जीवन में कुछ समय और मिलता तो इस विकल्प को राष्ट्रीय स्तर पर उभारने में योगदान देते।  (सप्रेस)  

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1 टिप्पणी

  1. सोमनाथ त्रिपाठी जी ना कोई राजनैतिक हस्ती थे और ना ही कोई उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी। इस सब के बावजूद भी वे वैकल्पिक राजनीति के ऐसे पुरोधा थे जो साफ-सुथरी राजनीति में आने के लिए लोगों को प्रेरित करते थे वह उनका मार्गदर्शन करते थे।
    उन्होंने अध्ययन अध्यापन के उपरांत समाज में व्याप्त विषमताओं के प्रतिरोध में अपनी आवाज हमेशा उठाई और लोगों को तैयार किया कि वह विषमता के प्रति अपनी प्रतिक्रिया मुखर रूप से व्यक्त करें।
    बाबा मायाराम जी ने उनके पूरे जीवन वृतांत का जो आलेखन किया है वह गागर में सागर है।
    मुझे उनसे भेंट करने का और बात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और इसके लिए मैं बाबा मायाराम जी भाई योगेंद्र यादव जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करूंगा कि मुझे सोमनाथ जी का सानिध्य प्राप्त हुआ।
    ऐसे महा मना के निधन से समाजवादी व जन आंदोलन से जुड़े हुए लोगों के लिए व्यक्तिगत क्षति है परंतु उनकी दी हुई सीख सलाह मार्गदर्शन करते रहेगी।
    विनम्र श्रद्धांजलि दादा के प्रति।

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