पिछले करीब सवा दो महीनों से दिल्ली को घेरे बैठे किसानों के आसन्न संकट के दौरान आए केन्द्र सरकार के बजट से किसान-हितैषी होने की अपेक्षा थी। वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में यत्र-तत्र किसानों का जिक्र भी किया,...
दो दिन पहले आए केन्द्र के बजट पर प्रधानमंत्री ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि पिछले सालभर में कई ‘मिनी बजट’ आते रहे हैं और इस बार का बजट इसी श्रंखला का एक और पडाव भर होगा। एक...
यह जरूर है कि अंदरूनी मामलों में दखल न होने के सिद्धांत और मानवाधिकारों की वकालत में कई बार टकराव देखा जाता है। एक तरफ अमेरिका मानवाधिकारों के नाम पर दूसरे देशों में अपने भौतिक दखल को न्यायोचित ठहराता...
हाल के इस बजट को ही देखें तो अगले वित्त-वर्ष के लिए कृषि क्षेत्र को एक लाख 31,530 करोड रुपयों का आवंटन किया गया है, जो पिछले साल के बजट आवंटन से दस हजार करोड रुपए कम है, लेकिन...
किसान ‘कांट्रेक्ट फ़ार्मिंग’ से लड़ रहे हैं और पत्रकार ‘कांट्रेक्ट जर्नलिज़्म’ से। व्यवस्था ने हाथियों पर तो क़ाबू पा लिया है पर वह चींटियों से डर रही है। ये पत्रकार अपना काम उस सोशल मीडिया की मदद से कर...
हर साल बाढ, सूखा, आंधी, गर्मी, बर्फवारी और तूफानों जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बढने का एक मतलब यह भी है कि हमने एक वैश्विक समाज की हैसियत से धरती पर रहना अब तक नहीं सीखा है। एक तरफ, हमारे...
स्विट्जरलेंड के दावोस शहर में हर साल जनवरी में दुनियाभर के अमीरों का एक जमावडा ‘वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम’ हुआ करता है जिसके ठीक पहले वैश्विक एनजीओ ‘ऑक्सफैम’ दुनियाभर की गरीबी और गैर-बराबरी का लेखा-जोखा सार्वजनिक करता है। ‘ऑक्सफैम’ की...
किसी भी समाज में होने वाले आंदोलन उस समाज की जीवन्तता का प्रतीक होते हैं और इस लिहाज से देखें तो दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन, अपने तमाम सवालों के अलावा कृषि-क्षेत्र की जिन्दादिली का प्रतीक भी...
‘गणतंत्र दिवस’ की 26 जनवरी 71 साल पहले हमें अपने संविधान को अंगीकार करने की याद तो दिलाती ही है, साथ ही एक नागरिक की हैसियत से हमें अपने कर्तव्‍यों का बोध भी कराती है। इक्‍कीसवीं सदी के तीसरे...
किसान आंदोलन पर भी शिद्दत और नासमझी से सवाल उठाया गया है कि लाखों लोगों के भोजन (लंगर) और दूसरी व्यवस्थाओं का इंतजाम आखिर कैसे और कौन कर रहा है? कुछ अधिक ‘कल्पनाशील’ शहरी इसमें कनाडा, इंग्लेंड, अमरीका और...

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