कार्पोरेटीकरण को बढ़ावा तथा गरीबों, किसानों को लूटने वाला है यह बजट : मेधा पाटकर

3 फरवरी । नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री और प्रखर वक्‍ता सुश्री मेधा पाटकर एवं सामाजिक कार्यकर्ता देवराम कनेरा, कैलाश यादव, राजा मंडलोई ने बजट पर टिप्‍पणी करते हुए कहा कि पिछले सालभर से अधिक समय जीवटता और शहादत के साथ लड़कर किसानों ने कार्पोरेटीकरण के खिलाफ जीत हासिल की थी, लेकिन इस बजट का संदेश साफ है कि मौजूदा सरकार बड़े उद्योगपतियों को उनकी तिजोरी भरने का मौका देगी, इससे आम जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होगी| बजट में  किसानों के पक्ष में जरूर कुछ लाख करोड़ रुपए का आबंटन किया है, मगर वह भी पिछले सालों से कम ही है।  MSP में 2.7 लाख के बदले 2.3 लाख और प्रधानमंत्री किसान आशा योजना पर 400 करोड़ के बदले 1 करोड़ रुपए करके केंद्र सरकार का किसान विरोधी रवैया सामने आया है|

सुश्री पाटकर ने जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि वित्‍तमंत्री निर्मला सीतारमण, जो कंपनियों के निजीकरण की पक्षधर है, द्वारा घोषित किये गए बजट के मुख्य बिंदु बताते हैं कि ये तरीके पिछले दरवाजे से किये जाने वाले हमले समान है।

सुश्री पाटकर एवं अन्‍य सामाजिक कायकर्त्‍ताओं ने कहा कि ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ को 100 साल तक की जरूरत आंककर बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे 20 करोड़ का हाईवे विस्तार, 25 हजार कि.मी. का राष्ट्रीय महामार्ग, 60 किलोमीटर लंबे रोपवे आदि पर कुल लाखों करोड़ रु. का आबंटन हुआ है| इससे पूंजीपतियों, निजी वाहनों को प्राथमिकता देने की दिशा से किसानों की खेती छीनना, उसके लिए 2013 के भूअर्जन कानून को नजरअंदाज करके ‘राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण’ के कानून के तहत जबरन भूअधिग्रहण थोपना निश्चित है| साथ ही  नदियों को जोड़ने की योजना, केन- बेतवा से लेकर हर लिंक से खेती- प्रकृति पर गहरा असर लाकर नदियों को भी बर्बाद करेगी । इतना ही नहीं, इसका सालों पहले का 5,60,000 करोड रु. का बजट अब लाखों-करोड़ों से बढ़कर पूंजीपतियों को बड़े पूंजी निवेश का मौका दिा जाएगा, वहीं  नदी घाटीवासियों, किसानों का पानी बड़ी कंपनियां और बड़े शहरों की ओर खींचा जाएगा। इससे आंतर राज्य विवाद में नदियां और नदी घाटी के आदिवासी तथा अन्य आबादियां फंसी रहेगी। उन्‍होंने सवाल उठाया कि क्या यह सब की प्राथमिक जरूरत है?  बिना विनाश, विस्थापन और विषमता की तकनीक जल नियोजन, परिवहन में असंभव है?

उन्‍होंने कहा कि ‘निजी निवेशों को बढ़ावा देने का लक्ष्य रहेगा’ यह हिम्मत से कहते हुए ‘आईटी और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा’ कहने वाली अर्थ मंत्री यह नहीं जानती कि आज आईटी सेक्टर की कंपनियां प्रतिदिन करोड़ों की कमाई कर रही है? निजी निवेश, चाहे जिओ  का हो या अडानी का, या जिंदाल का हो या मित्तल का, इसका तो आघात भारतीय संचार निगम  के हजारों कर्मचारियों, किसान-मजदूर पर पडे़गा, यह बात किसी से छुपी नहीं है|  रेल्वे को PPP मॉडल पर चलाने का आशय सबसे अधिक रोजगार और जनता को लाभ देने वाला उद्योग कदम दर कदम बदल कर निजी संपत्ति में परिवर्तित करना ही है|

उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री आशा योजना के लिए पूर्व के 400 करोड़ के बदले 1 करोड़ का बजट रखकर ‘अन्नदाता आय सुरक्षा’ के नाम पर निराशा ही लायी है|  मात्र चावल और गेहूं की MSP पर खरीदी के लिए जो बजट 1286 लाख मैट्रिक टन के लिए 2.48 लाख करोड़ था, वह 1208 लाख मेट्रिक टन के लिए 2,37 लाख करोड़ पर उतार दिया है और MSP पर बेचने वालों की संख्या भी 1.97 करोड़ किसानों के बदले 1.63 करोड़ों किसान ही बताई गई है| स्वाभाविक है कि यह निजी व्यापारी, जिनमें केवल आड़त्ये नहीं, बड़े उद्योगपति भी शामिल होंगे, उन्हें कम दाम पर खरीदी का मौका देने की बात है| 2022 तक हर किसान की आय दुगुनी करने के बदले पूंजीपतियों की आय कई गुना क्‍यों बढ़ रही है?

उन्‍होंने कहा कि इस बजट में किसानों की कर्जमुक्ति संबंधी कोई प्रावधान नहीं है तब कंपनियों/उद्योगपतियों के टैक्स में 3% (18% से 15%) की कमी लायी जाना भयावह विरोधाभास है|

करोना काल में बेरोजगारी के साथ 1,53,000 से अधिक बेरोजगार श्रमिक और युवाओं की आत्महत्या एक दर्दनाक हकीकत रही है, तब ‘मनरेगा’ जैसी योजनाओं पर 1.1 लाख करोड़ के बदले 21000 करोड रु. पूर्व का वेतन भुगतान ही बाकी होते हुए मात्र 73000 करोड रु. का आवंटन किया गया है| यह 25% कटौती भी अन्याय पूर्ण है| जरूरी था बजट बढ़ाकर ‘मनरेगा’ के तहत साल में 200 दिन की रोजगार गारंटी और प्रतिदिन 300 की न्यूनतम मजदूरी|  लेकिन केंद्र शासन पलायन रोकना नहीं चाहती है, नहीं सर्वोच्च अदालत के फैसले के बावजूद रोजगार बढ़ाना|

2014 से 2 करोड रोजगार निर्माण का आश्वासन दिया जाता रहा लेकिन 2022 में फिर मात्र खोखला आश्वासन ही दिखाई दे रहा है, 60 लाख के रोजगार का| जबकि MSME याने छोटे, मध्यम उद्योगों के लिए 6000 करोड़ रु. आबंटित हुए हैं, तब भी गृहोद्योग/ ग्रामोद्योग  की विचारधारा, जो गांधी की देन है, उसी पर जोर दिए बिना असंभव है| इस पर बजट कहां है?

जैविक खेती की बात आजकल प्रधानमंत्रीजी के वक्तव्यों में सुनाई देती है लेकिन प्रत्यक्ष में जीएम फूड ही पीएम फूड  के रूप में ऑस्ट्रेलिया की विदेशी कंपनियों से अनुबंध होकर आगे बढ़ाए जा रहे हैं|

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