आनंद बैरागी

गौहर रज़ा की किताब “मिथकों से विज्ञान तक” सिर्फ़ विज्ञान की बात नहीं करती, बल्कि सोचने की आज़ादी का जश्न मनाती है। यह किताब पढ़ते हुए पाठक अपने पुराने ‘सच’ को नए सवालों की रोशनी में देखने लगता है। यह सिर्फ़ ज्ञान नहीं देती, जिज्ञासा की लौ जलाती है—जो हर पाठक के भीतर कुछ बदल जाती है। यह पुस्तक वैज्ञानिक सोच की ओर प्रेरित करती है, जहाँ हर ‘क्यों’ के पीछे ‘कैसे’ का उत्तर खोजा जाता है, और जिज्ञासा को नए आयाम मिलते हैं।

आनंद बैरागी

हर किताब आपको कुछ न कुछ देती है, लेकिन कुछ किताबें ऐसी भी होती हैं को कुछ छीन भी लेती हैं, जैसे आपके भ्रम, आपके तयशुदा सच, और “मिथकों से विज्ञान तक” ठीक वैसी ही किताब है।

गौहर रज़ा की यह किताब न सिर्फ़ विज्ञान की कहानी कहती है, बल्कि यह बताती है कि हर वो बात, जिसे हम बरसों से “सच” मानते आ रहे हैं, उसे सवाल की रोशनी में देखना जरूरी है। यह किताब किसी प्रयोगशाला की रिपोर्ट नहीं, बल्कि विचारों का खुला मैदान है, जहाँ सोच दौड़ती है, टकराती है, और कभी-कभी खुद से भी हार जाती है।

किताब की शुरुआत उन मिथकों से होती है जिन्हें कभी समाज की रीढ़ माना गया धार्मिक विश्वासों, प्राकृतिक शक्तियों और भय से जन्मी कहानियाँ। पर जैसे-जैसे इंसान ने “सवाल” पूछना सीखा, विज्ञान की नींव रखी गई। रज़ा समझाते हैं कि विज्ञान कोई ऊपर से थोप दिया गया सच नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है, तर्क करने, प्रयोग करने और गलती सुधारने की।

लेखक Gauhar Raza की भाषा बेहद सहज और आत्मीय है। पाउलो फ्रायर के बैंकिंग मॉडल ऑफ एजुकेशन की चर्चा करते हुए गौहर रज़ा शिक्षा प्रणाली की उस पुरानी सोच को चुनौती देते हैं, जहाँ हम ज्ञान को जमा करता है और परीक्षा के समय उसे निकालते हैं। वे कहते हैं कि शिक्षा तब तक अधूरी है जब तक उसमें सवाल पूछने की जगह न हो।

पहले मुझे लगता था कि “क्यों” पूछना ही वैज्ञानिक सोच है, लेकिन इस किताब ने बताया कि असली विज्ञान तो “कैसे” के रास्ते पर चलता है ? यही “कैसे” वह ज़मीन है जहाँ आस्था से तर्क की यात्रा शुरू होती है। आस्था जहाँ रुकती है, विज्ञान वहीं से अपने जूते कसता है।

किताब का सबसे चमत्कारी हिस्सा तब आता है जब गौहर 13.8 अरब वर्षों के ब्रह्मांडीय विकास को एक साल के कैलेंडर में समझाते हैं, जहाँ इंसान 31 दिसंबर की रात 11:59 पर आता है। यह आपको अपने होने की हैसियत समझा देता है, कि हम कितने छोटे, और कितने नए हैं इस ब्रह्मांड की कहानी में। एक पाठक के रूप में यह भी लगता है कि यदि यही यात्रा पाँच साल के पैमाने पर समझाई जाती, तो शायद बच्चों से लेकर बड़े तक, हर किसी के लिए यह और भी सहज होती।

इसी किताब से यह भी पता चलता है कि होमो सेपियंस की शाखा लगभग 3,15,000 वर्ष पहले शुरू हुई थी। और जो ज्ञान आज एक बच्चा तीसरी कक्षा में जानता है, जैसे एक पौधे का जीवन चक्र उसे समझने में मानवता को डेढ़ लाख साल लगे। यह तथ्य भीतर तक हिला देता है। आप ठहरकर सोचते हैं कि हम कितनी लंबी यात्रा तय कर यहाँ तक पहुँचे हैं, और आज भी कितना कुछ है जो जानना बाकी है।

“मिथकों से विज्ञान तक” एक किताब नहीं, एक संवाद है। यह सिर्फ उत्तर नहीं देती, बल्कि सवाल पूछने की आदत डालती है। यह किताब ज्ञान नहीं बाँटती, जिज्ञासा बोती है। और अगर आप उस बीज को थोड़ा पानी देंगे, तो अगली बार जब कोई ‘सच’ आपको सुनाया जाएगा, आप मुस्कुरा कर कहेंगे “ठहरो, पहले सोच लेते हैं।”

ज़रूर पढ़िए क्योंकि तर्क से किया गया एक सवाल, श्रद्धा से माने गए सौ तथ्यों से ज़्यादा ज़रूरी होता है।

गौहर रज़ा प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, कवि और सामाजिक चिंतक हैं। उनका जन्म 1956 में इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बीएससी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, तथा आईआईटी दिल्ली से एमटेक किया। तीन वर्षों तक एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्य करने के बाद, उन्होंने सीएसआईआर में वैज्ञानिक के रूप में कार्यभार संभाला और वहाँ से मुख्य वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी कविताएँ विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं, और वे सामाजिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय के लिए जाने जाते हैं।

पुस्तक का नाम: मिथकों से विज्ञान तक   लेखक: गौहर रज़ा  प्रकाशक: पेंगुइन स्वदेश प्रकाशन वर्ष: 2024  पेज 208 मूल्‍य 202 रूपये

आनंद बैरागी सामाजिक और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े हैं और नियमित रूप से पुस्तकों पर सारगर्भित टिप्पणियाँ लिखते हैं।