
एक तरह से देखें तो धरती पर जीवन को पैदा करने, उसे बनाए रखने और उसका पेट भरते रहने में जैव-विविधता सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैव-विविधता के इसी उपकार को याद दिलाते रहने के लिए हर साल दुनियाभर में 22 मई को ‘विश्व जैव-विविधता दिवस’ मनाया जाता है। प्रस्तुत है, जैव-विविधता की अहमियत पर अमिताभ पाण्डेय का यह लेख।-संपादक
हम और हमारे आसपास प्राकृतिक वातावरण में जो कुछ भी दृश्य – अदृश्य – जीवंत है, वह सब जैव-विविधता का प्रतीक है। इस पृथ्वी पर प्रकृति में जो रचे – बसे हैं, वे सब जैव-विविधता का हिस्सा हैं। जल – जंगल, जीव – जंतु, नदी- पहाड़, समुद्र – दलदल, रेगिस्तान – हरियाली, पेड़ – पौधे, फूल – फल, जड़ी – बूटी – घास, पशु – पक्षी और मनुष्य।
जी हां ! यह सब कुछ जैव-विविधता का हिस्सा हैं। जैव-विविधता के अंतर्गत ही आते हैं। जैव-विविधता बहुत व्यापक और जीवंत विषय है। इसके अंतर्गत पृथ्वी पर मौजूद विभिन्न प्रजातियों की संख्या, उनकी विविधता, एक ही प्रजाति के अंदर जीन की अनुवांशिकी विविधता, पास्थितिकी तंत्र की विविधता आती है। इसमें वन, घास के मैदान, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी शामिल है।
‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ द्वारा वर्ष 1992 में आयोजित ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’ के दौरान जैव-विविधता के बारे में बताया गया था कि “सभी स्रोतों से जीवित जीवन के बीच परिवर्तनशीलता को ही जैव-विविधता कहते हैं। इस परिवर्तनशीलता में स्थलीय, समुद्री एवं अन्य जलीय परिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिक परिवर्तन शामिल हैं। जैव-विविधता में प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के बीच, पारिस्थितिकी तन्त्र की विविधता आती है। ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ अन्य देशों में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर जैव-विविधता संरक्षण के लिए लगातार काम कर रहा है। भारत में भी जैव-विविधता के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासकीय स्तर पर, अशासकीय स्तर पर, सामाजिक और समुदाय के स्तर पर विशेष कार्यक्रम सफलतापूर्वक संचालित किए जा रहे हैं।
जैव-विविधता के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय, जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, वन मंत्रालय सहित अन्य विभाग समन्वय के साथ विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जैव-विविधता संरक्षण संबंधी विशेष योजनाओं का संचालन कर रहे हैं। जैव-विविधता का प्रकृति, पर्यावरण, जीव जंतुओं, मनुष्यों सहित अन्य जीवंत इकाइयों से गहरा संबंध है। जैव-विविधता पारिस्थितिकी तंत्र को सेवाएं प्रदान करती है। जैसे वायु और जल का शुद्धिकरण करना, मिट्टी का निर्माण करना, जलवायु का प्रबंधन करना। जैव-विविधता खाद्य सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है क्योंकि यह फसलों, पशुओं को भी प्रजातियों संबंधी विविधता प्रदान करती है। जैव-विविधता औषधीय संसाधनों का स्रोत है, जैसे कि पौधे और जानवर, जिनका प्रकृति में अपना महत्व है।
जैव-विविधता के संदर्भ में भारत देश को बहुत समृद्ध माना जाता है भारत के विभिन्न इलाकों में भौगोलिक विविधता और जलवायु की विभिन्नता के कारण जैव विविधता के विविध रूप देखने को मिलते हैं। भारत में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र पाए जाते हैं। इनमें वन, घास के मैदान, रेगिस्तान, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं। यहां विभिन्न प्रकार के पौधों की लगभग 18 हजार प्रजातियां पाई जाती हैं। हमारे देश में लगभग 90 हजार विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं की प्रजातियां पाई जाती हैं।
हमारे देश में जो वन क्षेत्र, घास के मैदान, दलदल, मरुस्थल, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, नदी, पहाड़ हैं उन सबका भी जैव-विविधता को बनाए रखने में बड़ा महत्व है। भारत में पश्चिमी घाट पर एक विस्तृत पर्वत श्रृंखला है। इसी प्रकार हिमालय पर्वत की श्रृंखला, सुंदरबन क्षेत्र की मैंग्रोव वन वाली श्रृंखला, जैव-विविधता के विशिष्ट उदाहरण हैं। इसके साथ ही हमारे देश में जितने भी ‘राष्ट्रीय उद्यान’ और ‘वन्य जीव अभ्यारण’ हैं, वे भी जैव-विविधता के प्रतीक हैं।
भारत में ‘जैव-विविधता अधिनियम, वर्ष 2002’ पारित किया गया है जो कि जैव-विविधता के संरक्षण और स्थाई उपयोग के लिए नियमन प्रदान करता है। यह अधिनियम जैव-विविधता के संरक्षण एवं उसके अवयवों के पोषण, उपयोग, जैव-संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से अर्जित लाभ में उचित एवं संपूर्ण हिस्सा बढ़ाने, उससे संबंधित या उसके अनुषांगिक विषयों का अपबंधन करने संबंधित है। इस नियम के अंतर्गत जैव-विविधता के संरक्षण और संवर्धन के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि जैव-विविधता के संदर्भ में प्रकृति ने भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश पर अपना भरपूर प्यार लुटाया है। मध्यप्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता है। वन एवं वन्य प्राणियों की विविधता है। यहां वन और नदियों की उपस्थिति के बीच संबंध है जिससे जैव-विविधता का संरक्षण होता है। वनों की गोद से निकलती सोन, नर्मदा, ताप्ती, चंबल के साथ ही केन, बेतवा, माही, पाहुज, शिप्रा, कालीसिंध, पार्वती, नेवज जैसी नदियां जनजीवन और जैव-विविधता को बेहतर बनाती हैं। मध्यप्रदेश में विभिन्न पर्वतों की श्रृंखलाएं और उनके जल-ग्रहण क्षेत्र जैव-विविधता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। यहां उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वाले सागौन मिश्रित साल के वन हैं।
मध्यप्रदेश के मंडला-डिंडोरी-सिवनी-बालाघाट जैसे जिलों में साल के वन हैं तो चंबल क्षेत्र के ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड तथा दतिया में छोटे झाड़ीदार वन हैं। बेतूल – हरदा सहित कुछ अन्य जिलों में बहुमूल्य सागौन वृक्ष के वन हैं। इन वनों से लकड़ी के अलावा बांस और प्रचुर मात्रा में विभिन्न प्रकार की लघु वनोपज एवं औषधि प्रजातियां मिलती हैं। यह सब जैव-विविधता में ही शामिल है।
प्रसंगवश बताते चलें कि मध्यप्रदेश में वन विभाग की स्थापना वर्ष 1860 में हुई और तभी से वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन प्रारंभ हो गया। संभवत: मध्यप्रदेश भारत का ऐसा राज्य है जहां भारत की प्रथम वन-नीति के अनुसार वर्ष 1994 से ही वर्किंग प्लान बनाने का कार्य किया जा रहा है। वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन की परंपरा भारत सरकार के वर्तमान उद्देश्यों और नीति-निर्देशों के अनुरूप जैव-विविधता का संरक्षण और संवर्धन कर रही है।
भारत सरकार द्वारा अधिसूचित ‘जैव-विविधता अधिनियम, वर्ष 2002’ की धारा 63(1) के अनुसार ‘मध्यप्रदेश जैव-विविधता अधिनियम, 2004’ दिनांक 17 दिसम्बर 2024 को अधिसूचित किया गया। इसके अंतर्गत 11 अप्रैल 2005 में ‘मध्यप्रदेश राज्य जैव-विविधता बोर्ड’ का गठन किया गया। इसका उद्देश्य मध्यप्रदेश में जैव-विविधता का संरक्षण करना, जैव-विविधता के संगठनों का संवहनीय, पोषणीय उपयोग तथा जीव-संसाधनों के ज्ञान के वाणिज्यिक उपयोग से अर्जित लाभ का उचित और साम्य-पूर्वक वितरण करना है।
मध्यप्रदेश में जैव-विविधता का संरक्षण करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर शोध, दस्तावेजीकरण परियोजनाएं, महाविद्यालयों एवं अशासकीय संस्थाओं के सहयोग से संचालित की जा रही हैं। वर्ष 2024 – 25 में कुल 24 परियोजनाएं संचालित की गईं जिनके माध्यम से जैव-विविधता के बारे में जागरूकता अभियान भी चलाए गए हैं। जैव-विविधता के संरक्षण के उद्देश्य से मध्यप्रदेश शासन, ‘मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड,’ स्कूल शिक्षा विभाग एवं अन्य सहयोगी विभागों के माध्यम से प्रतिवर्ष विद्यालय छात्र-छात्राओं के लिए ‘मोगली उत्सव’ का आयोजन करता है।
मध्यप्रदेश में राज्य स्तरीय ‘मोगली उत्सव’ वर्ष 2024 का आयोजन ‘पेंच टाइगर रिजर्व,’ जिला-सिवनी में दिनांक 11 से 13 नवंबर 2024 तक किया गया। प्रदेश के सभी 52 जिलों के चयनित 242 विद्यार्थियों एवं 108 शिक्षकों ने ‘मोगली उत्सव’ में भाग लिया। ‘मध्यप्रदेश राज्य जैव-विविधता बोर्ड’ द्वारा नेचर ट्रेल, ट्रेजर हंट, हैबिटेट सर्च, स्पार्क सफारी, जैव विविधता प्रदर्शनी, चलित जैव विविधता विज्ञान प्रदर्शनी संबंधी अनेक कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इनके माध्यम से जैव-विविधता के संरक्षण और संवर्धन हेतु जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है। (सप्रेस)