रांची 30 मई . झारखंड के आदिवासी बहुल जिलों से बड़ी संख्या में आए आदिवासी, मूलवासी लोग रांची राजभवन के समक्ष जुटे लोग और हुंकार भरी कि हेमंत सरकार अपने चुनावी वादे पूरी करे। मौका था झारखंड जनाधिकार महासभा की तरफ रांची स्थित राजभवन के समक्ष धरना का। यह सत्ता में आने के बाद शायद पहला बड़ा धरना था और इसमें सम्मिलित हुए लोगों ने हेमंत सोरेन सरकार को बनाने में भूमिका निभाई थी। विडंबना यह कि जो वादे कर हेमंत चुनाव में जीते और सत्ता में आये, उसे उन्होंने बिसरा दिया लगता है। और आज का धरना उन्हीं वादों को याद दिलाने के लिए दिया गया था।
झारखंड के सभी जिलों से 2500 से अधिक लोग रांची पहुंच के हेमंत सोरेन सरकार को याद दिलाए कि “जो कहा, वो करो”। झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज भवन के समीप राज्य सरकार को लंबित घोषणाओं उन चुनावी वादों को याद दिलाने के लिए एक-दिवसीय धरने का आयोजन किया।
धरने की शुरुआत मे एलीना होरो ने कहा कि 2024 के विधान सभा चुनाव में भी गठबंधन दलों ने जल, जंगल, जमीन, पहचान और स्वशासन सम्बंधित कई वादे किए थे। सितम्बर 2024 में भी महासभा ने इन मुद्दों पर धरना दिया था और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिली भी थी। आज फिर से उन्हीं मुद्दों पर लोग सड़क पर आंदोलन करने को मजबूर है। आलोका कुजूर ने जोड़ा कि चुनाव में आदिवासी-मूलवासियों ने फासीवादी, सांप्रदायिक और झारखंड विरोधी भाजपा के विरुद्ध इस अपेक्षा के साथ गठबंधन सरकार को चुना था कि जन मुद्दों पर कार्यवाई होगी। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।बल्कि कई मामलों में तो सरकार ने झारखंडी हित के विपरीत फैसले लिए है। यह आदिवासी-मूलवासियों के साथ धोखा है।
डेमका सोय ने कहा कि रघुवर सरकार ने राज्य के 22 लाख एकड़ गैर-मजरुआ व सामुदायिक ज़मीन को लैंड बैंक में डाल दिया था और भूमि अधिग्रहण कानून में 2017 में संशोधन कर जबरन अधिग्रहण का दरवाज़ा खोल दिया था। लेकिन बार-बार वादा करने के बावज़ूद गठबंधन सरकार ने आज तक रद्द नहीं किया। बासिंग हेस्सा ने कहा कि पेसा कानून लागू करने के प्रति हेमंत सोरेन सरकार की उदासीनता से साफ़ झलकता है कि सरकार आदिवासी-मूलवासियों के लिए ‘अबुआ राज’ की स्थापना नहीं चाहती है। श्यामल मार्डी बोले कि चांडिल बांध की नीलामी बाहरी लोगों को कर दी गयी है।
पश्चिमी सिंहभूम के ईचाखड़काई बांध विरोधी संघ से जुड़े रेयांस समद ने कहा कि झामुमो हर चुनाव में बोलती है कि ईचा-खड़कई डैम नहीं बनेगा लेकिन हाल के ट्राइबल एडभाइजरी कमेटी में इसे बनाने का निर्णय ले लिया गया। इससे सैंकड़ों आदिवासी परिवार विस्थापित होंगे। लातेहार-पलामू से आये अनेक लोगों ने वन अधिकार कानून के तहत निजी और सामुदायिक पट्टा न मिलने के तथ्य दिए जिससे सरकार की ‘अबुआ बीर दिशुम’ अभियान के खोकलेपन को उजागर किया। नंदकिशोर गंझू ने कहा कि व्यापक कटौती के साथ निजी पट्टा दिया जा रहा है। सामुदायिक वन अधिकार तो मिल ही नहीं रहा है.
बीरेन्द्र भगत कहा कि हेमंत सोरेन सरकार जब से जीती है, कभी अडानी के साथ मिल रही है तो कभी विदेश जाकर झारखंड की ज़मीन को बेचने का कार्यक्रम बना रही है। मिथिलेश दांगी ने कहा अडानी के लिए प्रस्तावित गोंडुलपुरा कोयला खदान के विरुद्ध ग्रामीण 25 महीनों से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन सरकार अडानी के पक्ष में खड़ी है।
हेलन सुंडी ने कहा कि एक तरफ लोगों के जल, जंगल, जमीन और स्वायत्तता के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. वहीं दूसरी ओर, इस सरकार में भी आदिवासी-दलितों के लिए फर्जी मामले और सालों तक जेल में विचाराधीन बन के बंद रहना जारी है। सिराज बोले कि बिना ग्राम सभा की सहमति के सुरक्षा बल कैंप भी लगातार बनाये जा रहे हैं। राज्य में 14500 कैदियों में लगभग 80 फीसदी विचाराधीन हैं। राज्य के 50% जेल में क्षमता से अधिक कैदी हैं. गठबंधन दलों ने घोषणा पत्र में वादा किया था कि लम्बे समय से जेल में बंद विचारधीन कैदियों को रिहा किया जायेगा और फर्जी मामलों के लिए न्यायिक आयोग का गठन होगा लेकिन चुनाव जीतने के बाद इस पर चुप्पी है।
कई वक्ताओं ने कहा कि हेमंत सरकार “अबुआ सरकार” होने का दावा करती है, लेकिन झारखंडी हितों के विपरीत काम कर रही है। सोमय मार्डी ने कहा 2016 में रघुवर सरकार ने झारखंड-विरोधी स्थानीय नीति बनाई थी। गठबंधन सरकार 6 साल में भी इसे रद्द कर आदिवासी-मूलवासियों के हितों की सुरक्षा करने के लिए उपयुक्त स्थानीय व नियोजन नीति नहीं बनाई।

सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े धर्म वाल्मीकि ने बताया कि दलितों के लिए महज़ जाति प्रमाण पत्र बनवाना एक संघर्ष है। अनेक दलित युवा प्रमाण पत्र न बनने के कारण पढाई व रोज़गार से वंचित हो रहे हैं। हालाँकि राज्य सरकार ने भूमिहीन परिवारों के जाति प्रमाण पत्र के लिए एक प्रक्रिया बनाकर रखी है, लेकिन वो इतनी जटिल है कि प्रमाण पत्र मिलना ही बहुत मुश्किल है। धरने में लोगों ने आदिवासी-दलित बच्चों में व्यापक कुपोषण के मुद्दे को भी उठाया। रश्मि यादव ने कहा कि अनगिनत बार- बार घोषणा के बावज़ूद मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी में बच्चों को रोज़ अंडे नहीं मिल रहे हैं।
यूनाइटेड मिली फोरम के अफज़ल अनीस ने कहा कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में राज्य में एक के बाद एक धर्म के नाम पर लिंचिंग हो रही थी। लोगों को आशा थी कि हेमंत सोरेन सरकार में ऐसी घटनाएं रुकेंगी। लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में भी अल्पसंख्यकों पर धार्मिक हिंसा लगातार हो रही है। गठबंधन दलों ने कई बार मॉब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने का वादा भी किया था लेकिन आज तक यह अपूर्ण है।
धरने के अंत में झारखंड जनाधिकार महासभा ने निम्न मांगों के साथ मुख्यमंत्री के नाम मांग पत्र दिया: 1) भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून (2017) और लैंड बैंक नीति को तुरंत रद्द हो। विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग का गठन कर सक्रिय किया जाए; 2) पेसा कानून को पूर्णतः लागू किया जाए; 3) सभी निजी व सामुदायिक वन अधिकार दावों एवं सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार दावों पर बिना कटौती तुरंत पट्टा दिया जाए; 4) भूमिहीन दलितों को तुरंत जाति प्रमाण पत्र व भूमि पट्टा का आवंटन किया जाए; 5) ‘झारखंड पर आदिवासी-मूलवासियों का पहला अधिकार’ – इसके आधार पर स्थानीयता और नियोजन नीति बनाई जाए; 6) लम्बे समय से विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाये और फर्जी मामलो को रद्द किया जाए; 7) मॉब लिंचिंग के विरुद्ध विशेष कानून बनाई जाए; 8) आंगनबाड़ियों और मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडे दिए जाए.
धरने का संचालन रिया तूलिका पिंगुआ और दिनेश मुर्मू ने किया. धरने में वक्ता: अंगद महतो, अजय उरांव, अलोका कुजूर, अनिल हंसदा, अमीनता उरांव, बिरेंद्र भगत, बैजनाथ मुर्मू, बीर सिंह बिरुली, चार्ल्स मुर्मू, देमका सोय, धरम वाल्मीकि, एलीना होरो, कौशल्या हेम्ब्रम, हेलेन सुंडी, जेम्स कुल्लू, जयपाल सरदार, मिथिलेश दांगी, मीना मुर्मू, नंद किशोर गंझू, रश्मी, रेणु उरांव, रियांस समद, रोज़ मधु तिर्की, श्यामल मार्डी, सोमय मार्डी, सिसौल सोरेन, सुशांत सोरेन, सोमवार मार्डी, सेलेस्टीन लकड़ा, सुरेंद्र उरांव, सोना हंसदा, सिराज दत्ता, संजय यादव, टॉम कावला समेत कई लोगों ने अपनी बात रखी।