
हम आज जिस विकास के दौर से गुजर रहे हैं उसमें खासकर पैदल चलने वालों की इज्जत खत्म हो गई है। पैदल चलना मजबूरी का नाम हो गया है।
हम आज जिस विकास के दौर से गुजर रहे हैं उसमें खासकर पैदल चलने वालों की इज्जत खत्म हो गई है। पैदल चलना मजबूरी का नाम हो गया है। सड़क पर तो पदयात्रियों के साथ वाहन वालों के सलूक बहुत चुभने वाले होते हैं। मानों सड़क पर पदयात्रियों का कोई अधिकार ही नहीं हो। उनके साथ अमानवीय व्यवहार होता है। अभी हाल ही में देश की सबसे बड़ी अदालत ने सड़कों पर पैदल चलने वालों की सुध ली है और उनके अधिकारों के पक्ष में अभूतपूर्व फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि बिना किसी बाधा के फुटपाथ का उपयोग करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का अनिवार्य हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों और केंद्र प्रशासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर ही पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशा निर्देश तैयार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइंया की पीठ ने पैदल चलने वाले लोगों की सुरक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि फुटपाथों का निर्माण और रखरखाव इस तरह से किया जाना चाहिए कि दिव्यांग लोगों के लिए भी पहुंच आसानी से सुलभ और सुनिश्चित हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड के गठन के लिए 6 महीने की मोहलत दी है। एक ऐसा बोर्ड बनाने के लिए, जो समर्पित भाव से सड़कों और फुटपाथों को लोगों की जरूरत के मुताबिक विकसित करने की दिशा में कार्रवाई को अंजाम दे सके। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि पैदल चलने वाले लोगों के लिए उचित फुटपाथ होना बहुत जरूरी है। फुटपाथ ना होना वास्तव में पैदल चलने वाले यात्रियों का अपमान है। देश में खासतौर से ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में 50 फ़ीसदी आबादी पैदल ही चलती है जबकि देश में जितनी सड़के हैं उनमें 30 फ़ीसदी से भी कम फुटपाथ उपलब्ध है। पैदल चलने वालों में ज्यादातर लोग सड़कों पर असुरक्षित महसूस करते हैं। इस वजह से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश भर में 2022 में पैदल चलने वाले 32825 लोग मुफ्त में मौत के शिकार हुए। वर्ष 2021 में 17113 लोग सड़क हादसों के शिकार हुए जिनमें 9462 उनकी मौत हो गई। वर्ष 2023 में सड़क हादसों में मारा जाने वाला हर पांचवां आदमी पैदल चलने वाला था ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशिया में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 66 प्रतिशत लोग पैदल यात्री, दोपहिया वाहन और साइकिल चालक होते हैं, जबकि भारत में सबसे अधिक मौतें दोपहिया और तिपहिया वाहन चालकों की होती हैं।
दिन के किसी न किसी समय, हर कोई पैदल यात्री होता है। दुर्भाग्य से, पैदल यात्रियों की चोटें और मौतें अभी भी उच्च स्तर पर हैं। 2023 में, देश भर में 7,314 पैदल यात्री मारे गए और 68,000 से अधिक पैदल यात्री घायल हुए।
अगर जिस सड़क पर पैदल चलने वालों के लिए जगह ही नहीं है तो उस सड़क का क्या मतलब? यहां तक कि एक्सप्रेसवे बनाते समय भी अनेक जगह पैदल चलने वालों का ध्यान रखा जा रहा है। स्थानीय शासन प्रशासन की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह सभी सड़कों पर फुटपाथ की व्यवस्था करें।