Tarun Bharat Sangh के स्वर्णिम 50 वर्षों के कार्यों की गरिमामयी प्रस्तुति, दो पुस्तकों का विमोचन, 110 जीवनदायकों का सम्मान

भीकमपुरा (राजस्थान), 31 मई। राजस्थान के अलवर जिले स्थित भीकमपुरा गाँव के तरुण आश्रम में शुक्रवार को तरुण भारत संघ (तभासं) के स्वर्ण जयंती वर्ष का भव्य आयोजन हुआ। “स्वर्ण जयंती उत्सव” में देश-विदेश से आए 500 से अधिक सहभागी, जल-संरक्षण कार्यकर्ता, पत्रकार, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण प्रेमी और जलबिरादरी से जुड़े लोगों ने सहभागिकता की।

इस अवसर पर दो विशेष पुस्तकों का विमोचन किया गया, जिसमें मराठी अखबार ‘सकाल’ के पूर्व प्रधान संपादक श्रीराम पवार द्वारा मराठी में संपादित व राजेन्द्र सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘निसर्ग आणि माणूस’ और दैनिक भास्कार के वरिष्ठ पत्रकार राजेश रवि द्वारा लिखित पुस्तक ‘बागी से किसानी’ मुख्‍य है। ‘निसर्ग आणि माणूस’ पुस्तक चंबल अंचल में तरुण भारत संघ के हस्तक्षेप और सामाजिक परिवर्तन पर केंद्रित है। वहीं ‘बागी से किसानी’ चंबल क्षेत्र में हथियार छोड़ खेती करने वाले समाज की जीवंत गाथा है। वरिष्ठ पत्रकारों सन्नी सब्सटीन, गोविंद चतुर्वेदी, रवि अहूजा, नारायण बैराठ और यासीर मुहम्मद की सहभागिता में ‘पानी पंचायत’ पुस्तक का भी विमोचन किया गया।

110 जीवनदायकों का सम्मान

इस अवसर पर तभासं के 50 वर्षा के कार्यों की सिद्धी से जुड़े हुए 110 लोगों को जीवन रत्न सम्मान, निष्ठा-विभूषण सम्मान, कर्म-भूषण सम्मान, प्रगति-श्री सम्मान, सृजन-श्री सम्मान, नव-दीप सम्मान, प्रकृति-संवादक, नदी नायक सम्मान, नदी प्रहारी सम्मान, प्रकृति-प्रबोधक, नदी-ज्ञानी, सागर नायक, पर्वत प्रहरी और सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया।

तभासं की स्थापना से जुड़े रमेश शर्मा ने अपनी कविता-पाठ से समारोह की शुरुआत की, जो तभासं के संघर्ष, मूल्य और आज की उपलब्धियों को गहराई से छूता है।

राजेन्द्र सिंह ने स्मरण करते हुए कहा कि “30 मई 1975 को तभासं को राजस्थान सरकार से पंजीयन प्रमाण पत्र मिला था, इसलिए आज को स्थापना दिवस माना जाता है। आग, बाढ़ और सुखाड़ मुक्ति के काम से ही तरुण भारत संघ शुरू हुआ था। डोला गांव की बाढ़ मुक्ति, राजस्थान के गोपालपुरा की सुखाड़ मुक्ति और जयपुर विश्वविद्यालय में लगी आग में अकाल राहत कार्यों से ही तरुण भारत संघ आज दुनिया में जाना जाता है।

उन्होंने कहा –“स्वर्णिम वर्ष अंतिम वर्ष नहीं होता, बल्कि यह अनुभवों की सिद्धि का विस्तारक होता है। यह यात्रा रेल की तरह है, जो एक ही पटरी पर विश्वास, अभ्यास और प्रतिबद्धता से निरंतर चल रही है। तरुण भारत संघ सौभाग्यशाली रहा है कि, इस रेल के डिब्बे में बैठने वाले मुसाफिर अंतिम रेलवे स्टेशन तक सफर कर रहे हैं। आरंभ से लेकर आज तक तरूण भारत संघ में जो अपना साध्य माना उसकी साधना करके, उसमें सिद्धि प्राप्त करने के लिए सतत रूप से जुटा हुआ है।

उन्होंने आगे कहा – तरुण भारत संघ ने पिछले दो दशकों में ऐसे बहुत सारे प्रदेशों में काम शुरू किए हैं लेकिन आज का दिन देश भर के लोगों के सामने तरुण भारत संघ को अपने संकल्प की साध्य की सिद्धि के लिए अपनी साधना और अपने साधनों की शुद्धि को पारदर्शिता से रखने का दिन है। अब यह रेल एक जंक्शन पर रुकी है, जहाँ से नई दिशाओं में यात्रा शुरू करनी है – नई पीढ़ियों के साथ, नए संकल्पों के साथ।

इस अवसर पर जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति ने कर्नल प्रो शिव सिंह सारंगदेवोत कहा कि, तभासं  ने 50 वर्षों में समाज के पिछडे आर्थिक रूप गरीब लाचार, बेसहारा लोगों को जल संरक्षण के काम में लगाकर, भारतीय विरासत व ज्ञानतंत्र का संरक्षण करके नदियों और उनकी सभ्यता को पुनर्जीवित किया है।

सकाल अखबार के पूर्व प्रधान संपादक श्रीराम पवार ने कहा कि, मैं पिछले साल चंबल में गया था। इन्होनें चंबल की हिंसा को अहिंसा में बदलने का जो चमत्कारी काम किया है, वो अद्धभुत है; जो पूरी दुनिया को सीखने लायक है।

सर्वोदय कार्यकर्ता रामधीरज सिंह ने कहा कि, हमारे जीवन के पिछले 50 वर्षों एक मात्र संस्था देखी है जो कृतज्ञता बोध का अहसास अपने मन में रखती है। इसलिए तभासं के साथ मिलकर दुनिया भर के काम करने वालों चित्र पत्थरों पर उकेरे गए है।

जलबिरादरी के राष्ट्रीय समन्वयक सत्यनारायण बुल्लीसेट्टी, सुनील रहाणे, मुकेश पंडित,नरेन्द्र चुघ, विनिता आपटे, रामाकांत कुलकर्णी, आशुतोष रामगिर, प्रवीण महाजन, अनिकेत लोहिया ने कहा कि, हमने तभासं से सीखकर प्रकृति और नदी की चेतना बढ़ाने का काम देशभर में कर रहे है।

Tarun Bharat Sangh के निदेशक मौलिक सिसोदिया ने 1975 से 2025 तक के संगठन की प्रमुख उपलब्धियों को एक सटीक ऐतिहासिक क्रम में प्रस्तुत किया। उन्‍होंने बताया कि तरुण भारत संघ (तभासं) ने वर्ष 2025 में अपने कार्य की स्वर्ण जयंती पूरी की। सतत विकास, जल संरक्षण और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले इस संगठन की यात्रा 1975 में जयपुर से प्रारंभ हुई थी। 1980 में राजेन्द्र सिंह के महासचिव बनने के बाद संस्था को नई दिशा और गति मिली, और 1985 में इसका केंद्र अलवर जिले के भीकमपुरा गाँव में स्थानांतरित हो गया। अलवर में तरुण भारत संघ द्वारा पारंपरिक वर्षा जल संचयन प्रणालियों का पुनरुद्धार, जोहड़ों का निर्माण तथा लुप्त होती नदियों का पुनर्जीवन जैसे प्रयास किए गए, जिन्होंने आगे चलकर न केवल पर्यावरणीय संतुलन बहाल किया, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन लाया।

1986 में गोपालपुरा गाँव में पहला जोहड़ समुदाय की भागीदारी से बनाया गया। इसके बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, जैविक खेती और शराब निषेध जैसे सामाजिक मुद्दों पर व्यापक कार्य हुआ। 1990 तक 100 जोहड़ बनाकर सामूहिक प्रयासों की एक मिसाल कायम की गई।

1991 में अवैध खनन के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका और 1992 में आये ऐतिहासिक निर्णय ने तभासं को पर्यावरणीय न्याय के क्षेत्र में राष्ट्रीय पहचान दिलाई। 1994 में संस्था को इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार मिला, और 1996 में थानागाज़ी ब्लॉक को “डार्क ज़ोन” से “व्हाइट ज़ोन” में बदले जाने जैसी उल्लेखनीय सफलता मिली।

1997 से 2000 के बीच अरवरी और अन्य नदियों के पुनर्जीवन ने पारिस्थितिकी और आजीविका में व्यापक बदलाव लाए। “अरवरी संसद” (1998) और “जल बिरादरी” (1999) जैसे अभिनव प्रयासों ने जल प्रबंधन में जन भागीदारी का नया मॉडल प्रस्तुत किया। इसी दौरान 3000वाँ जोहड़ बनाकर जल संरचना के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य हुआ।

2000 के दशक की शुरुआत में संस्था को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मान्यता मिली। 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने अरवरी नदी क्षेत्र का दौरा किया और 2001 में राजेन्द्र सिंह को रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2005 में “तरुण जल विद्यापीठ” की स्थापना के साथ जल नीतियों के निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया गया। राजेन्द्र सिंह को सामाजिक सेवा हेतु “जमनालाल बजाज पुरस्कार“ प्रदान किया गया। “ग्राउंड वॉटर रेगुलेशन बिल का जन मसौदा प्रस्तुत किया-एक महत्त्वपूर्ण प्रयास जो भारत में भूजल प्रबंधन और सतत विकास की दिशा में नीति निर्माण में जनता की भागीदारी का प्रतीक बना।

2006 से 2013 के बीच संस्था ने जल के व्यावसायिक दोहन के खिलाफ कानूनी हस्तक्षेप किए और “जल कुंभ”, “नदी कूच अभियान” और “जल जन जोड़ अभियान” जैसे आयोजनों से जन जागरूकता को व्यापक आकार दिया।

2015 में राजेन्द्र सिंह को “स्टॉकहोम वॉटर प्राइज” मिला और “वर्ल्ड वॉटर वॉक्स फॉर पीस” जैसे वैश्विक अभियान से तभासं ने जल को शांति और सहयोग का माध्यम बनाया। शहरी नदियों के पुनर्जीवन जैसे दहिसर और मूला-मुठा पर भी कार्य प्रारंभ हुआ। 2020 में कोविड संकट के दौरान संस्था ने 15,000 से अधिक ज़रूरतमंद परिवारों तक राहत पहुंचाई। यह पचास वर्षों की यात्रा सिर्फ एक संस्था की नहीं, बल्कि उस जनचेतना की कहानी है जो जल, जीवन और समुदाय के बीच के रिश्ते को फिर से मजबूत करने में लगी रही।

2023 तक, चम्बल घाटी में तो एक ऐतिहासिक सामाजिक परिवर्तन देखने को मिला, जहाँ लगभग 1,000 पूर्व डकैतों ने हथियार छोड़कर खेती और जल-संरक्षण को अपनाया। यह केवल जल संरक्षण नही, बल्कि सामाजिक पुनर्वास और शांति निर्माण का भी एक अप्रतिम उदाहरण बन गया। 2025 में, को विश्व के प्रतिष्ठित “अर्थना अवार्ड“ के फाइनलिस्ट के रूप में चुना गया। यह चयन दर्शाता है कार्य अब न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए जल और जलवायु संकट से निपटने का एक जीवंत, व्यवहारिक और प्रेरणादायक मॉडल बन चुका है। यह समुदाय-आधारित जल पुनर्जीवन आंदोलन आज एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जहाँ सामाजिक चेतना और सामूहिक शक्ति के बल पर नदियाँ पुनर्जीवित हो रही हैं और एक जल-सुरक्षित भविष्य आकार ले रहा है।

यह उत्सव जहाँ एक ओर अतीत के प्रति आभार और गर्व का अवसर था, वहीं दूसरी ओर नई दिशा में समर्पण और संकल्प का क्षण भी।