तरुण भारत संघ के तत्वावधान में सैरनी नदी के किनारे भव्य सम्मान समारोह सम्पन्न
धौलपुर, 5 मई 2025। कभी बंदूक थामे रहने वाले हाथों ने अब हल और हौसले से नदी को जीवन देना शुरू किया है। चंबल की सहायक नदी सैरनी को पुनर्जीवित करने वाले समुदायों का आज तरुण भारत संघ के तत्वावधान में सैरनी नदी के किनारे भव्य सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसे उन्होंने अपने श्रम, सामूहिकता और संकल्प से पुनर्जीवित किया है। समारोह ने यह दिखा दिया कि यदि समाज ठान ले तो बंदूक छोड़ जलसंरक्षण को अपनाकर नई सभ्यता की नींव रखी जा सकती है।
63 जल योद्धाओं को ‘विश्व शांति जलदूत सम्मान’
इस अवसर पर धौलपुर और करौली ज़िलों की 23 सूखती नदियों को जीवन देने वाले 63 जल योद्धाओं को ‘विश्व शांति जलदूत सम्मान’ प्रदान किया गया। इनमें वे भी शामिल थे, जो कभी चंबल के कुख्यात डाकू थे और अब पर्यावरण प्रहरी बन चुके हैं।
समारोह की अध्यक्षता जल चेतना के वाहक पर्यावरणविद् श्री राजेंद्र सिंह ने की। मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर के कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेबोत, नालंदा प्रकाशन के अध्यक्ष नीरज कुमार, गांधी शांति प्रतिष्ठान के सेवानिवृत गांधी विचारक रमेशचंद्र शर्मा और समाज सेवी ईश्वर चंद्र गाजीपुरी उपस्थित थे।

समारोह की शुरुआत रमेशचंद्र शर्मा द्वारा गाए गए नदी गीत ‘नदियां धीरे बहो’ से हुई। इसके बाद मंच पर आए उन लोगों की कहानियाँ, जिन्होंने अपने अतीत को पीछे छोड़ जल संरक्षण को अपनाया। पूर्व डकैत लज्जा राम ने कहा “उस जीवन से आज का जीवन कहीं बेहतर है। अब खेतों में हरियाली है, मन में शांति है।” भूरी सिंह और जगदीश आलमपुर ने बताया कि कैसे बंदूक छोड़कर खेत जोतना शुरू किया तो जीवन में समृद्धि आ गई। रघुवीर कोरीपुरा ने बताया “कांजरी के तालाब से शुरू होकर सैरनी नदी को पुनर्जीवन मिला।आज नदी बह रही है और गाँवों में हरियाली है।”
समाजसेवी ईश्वर चंद्र ने कहा “जो लोग अच्छे काम कर रहे हैं, उन्हें उनके ही क्षेत्र में सम्मान देना सबसे सार्थक तरीका है।”
पानी, प्यार और शांति – यही असली बदलाव है

सम्मान समारोह के मौके पर जल योद्धा एवं मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा कि यह समारोह अहिंसा और सत्य के मार्ग पर एक बदलाव का प्रतीक है। हम सब मिलकर इस अच्छे काम में जुटे हैं। जब तक भगवान हमारे इस काम में मदद करते रहेंगे, तब तक हम सब सच्चे मन से इस काम में लगे रहेंगे। समाज को अपना काम अपने आप करना चाहिए, तभी बदलाव लाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि सैरनी नदी का पुनर्जीवित होना इसका जीता जागता उदाहरण है। हमें ऐसे ही काम करना चाहिए जिससे पानी प्यार, शान्ति और समृद्धि लाता है और अपराध पर अंकुश लगता है।
पानी से बढ़ी समृद्धि: लागत से कई गुना लाभ
उन्होंने कहा कि यहाँ के लोग बहुत ही भावनाशील बाग़ी थे। अब वे सकारात्मक-रचनात्मक काम में लगे हैं। यह क्षेत्र अपराध शून्य जैसा बन गया है। अब ये बाहर के लोगों को भी रोज़गार देने लगे हैं। फ़सलें, अन्न, चारा और सब्ज़ियों में विविधता बढ़ गई है। जितना पैसा जल सरंचना बनने में खर्च होता है, उससे ज्यादा मुनाफा ये एक ही साल में अन्न, चारा, ईंधन, दूध, घी, मछली, सिंघाड़े आदि पैदा करके कमा लेते हैं।
इसके पूर्व समारोह में तरुण भारत संघ के 50 वर्षों के कार्यों पर आधारित पांच खण्डों की ‘पानी पंचायत पुस्तक’ का विमोचन हुआ। साथ ही चंबल की सहायक पुनर्जीवित नदियों – सैरनी, नहरों नदी, और तेवर पर आधारित पुस्तकों का भी लोकार्पण किया गया।
जल, जंगल और जानवर – सैरनी में लौटी जीवनधारा
उल्लेखनीय है कि सन् 1990 से 2015 तक यह इलाका उजाड़, बेपानी और अराजकता से भरा था। क्षेत्र में अवैध खनन, गरीबी और अपराध ने लोगों को डकैत बना दिया था। सामूहिक जीवन अपराध में बदलने लगा था। लेकिन तरुण भारत संघ के प्रयासों से ग्राम सभाएं फिर से सक्रिय हुईं। छोटे-छोटे तालाब बने, जलग्रहण क्षेत्रों का पुनरुद्धार हुआ, और सामूहिक श्रम संस्कृति ने फिर जन्म लिया।
आज, सैरनी नदी न केवल बह रही है, बल्कि साथ में ला रही है – मवेशी, पक्षी, वन्यजीव, और जंगल। अब यह इलाका अपराध शून्य बन चुका है। जो लोग कभी अपहरण और लूट में लगे थे, आज खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, और जल संरचना निर्माण में लगे हैं। सैरनी नदी की कहानी सिर्फ एक नदी के पुनर्जीवन की नहीं है, यह एक सभ्यता के पुनर्जागरण की कहानी है। जहाँ कभी बंदूकें बोली थीं, वहाँ अब बहती है जीवनदायिनी जलधारा।