
सब जानते हैं कि तम्बाकू मानव-स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है, लेकिन कोई उसके उत्पादन पर रोक लगाने की अगुआई नहीं करना चाहता। बीस साल पहले ‘विश्व स्वास्थ्य संठन’ की पहल पर दुनियाभर के देशों ने एक ऐसी संधि पर हस्ताक्षर किए थे जिसने तम्बाकू के बाजार पर कुछ नियंत्रण लगाया था। आज उस संधि की क्या स्थिति है?
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस 31 May
इस बार, सन् 2025 में, 31 मई को मनाए जाने वाले ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस’ की थीम है –‘तंम्बाकू और निकोटीन उत्पादों पर उद्योगों की रणनीति को उजागर करना।’ जाहिर है, यह एक आर्थिक, राजनीतिक थीम है। तम्बाकू और निकोटीन उत्पादों को खपाने और उससे भारी मुनाफा बनाने की कंपनियों की रणनीति जग-जाहिर है। सवाल है, सरकारें इसे लेकर कितनी सचेत हैं? और वे तम्बाकू की खपत को रोकने, कम करने की गरज से क्या कर रही हैं?
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) के नेतृत्व में एक ऐसी संधि ने बीस साल पूरे कर लिए हैं, जिसका दुनिया भर में जन-स्वास्थ्य को व्यापक लाभ मिला है। विश्व में ‘फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल’ (एफसीटीसी) नामक यह संधि 27 फरवरी 2005 को हुई थी। अब इसे इतिहास की ऐसी पहल के रूप में स्वीकार्यता मिल गई है जिसे न केवल व्यापक रूप से अपनाया गया है, बल्कि जिसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आए हैं। इस संधि की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी बदौलत लाखों लोगों की जान बचाने में कामयाबी मिली है। मानवता के लिए एक गंभीर संकट बन चुके तम्बाकू के दुष्प्रभावों को कम करने में इस संधि की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
यह सर्वविदित है कि तम्बाकू मानवता के लिए एक अभिशाप बन चुकी है। यह दुनिया में कैंसर, टीबी जैसी बीमारियों और उनकी वजह से होने वाली मौतों का कारण बन रही है। तम्बाकू के कारण हर साल लाखों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 20 प्रतिशत हृदय रोगियों की मौत के लिए तम्बाकू ही जिम्मेदार है। इसके अलावा यह सामाजिक एवं आर्थिक दबाव भी बढ़ाती है जिससे गरीब और मध्यम-वर्गीय परिवार अधिक प्रभावित होते हैं।
‘एफसीटीसी’ संधि के तहत कई उपाय अपनाए गए हैं जिनका सकारात्मक प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वर्तमान में दुनिया के 138 देशों में सिगरेट के पैकेटों पर चेतावनियां दी जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को तम्बाकू के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक किया जा रहा है। कई देशों में तम्बाकू उत्पादों की पैकेजिंग को साधारण कर दिया गया है, जिससे ब्रांडिंग और आकर्षक डिज़ाइन की संभावनाओं को समाप्त करने में मदद मिली है।
यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस संधि की बदौलत तम्बाकू विज्ञापनों और प्रमोशन पर 66 से अधिक देशों में प्रतिबंध लगाया जा चुका है। सार्वजनिक स्थानों, कार्यस्थलों और अन्य बंद इमारतों में धूम्रपान निषेध से निष्क्रिय-धूम्रपान के कारण होने वाले नुकसान को भी कम करने में मदद मिली है। इससे ऐसे लोगों का जीवन बचाने में सहायता मिली है, जो खुद सिगरेट का प्रयोग नहीं करते, पर धूम्रपान करने वाले अन्य लोगों की वजह से इसका खतरा झेलते हैं। इसके परिणामस्वरूप, विश्व की एक चौथाई आबादी ऐसी नीतियों के दायरे में आ चुकी है, जिससे तम्बाकू सेवन की प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई है।
‘डब्ल्यूएचओ’ ने संधि की 20 वीं वर्षगांठ के मौके पर कहा है कि तम्बाकू के दुष्प्रभावों से बचाव पर केन्द्रित इस सन्धि ने पिछले दो दशकों में लाखों-करोड़ों जिंदगियों की रक्षा करने में मदद की है। यह एक तथ्य है कि तम्बाकू गैर-संचारी रोगों का एक बड़ा कारण है जो न केवल असामयिक मौतों का कारण बनता है, बल्कि इससे प्रभावित लोग विकलागंता का भी शिकार हो सकते हैं। जो गरीब लोग तम्बाकू-जनित बीमारियों से पीडि़त होते हैं, उन पर इलाज का भारी बोझ पड़ता है। ऐसे लोग आम लोगों की तुलना में पोषक आहार से भी वंचित रहते हैं, क्योंकि वे अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा महंगे तम्बाकू उत्पादों पर खर्च कर डालते हैं।
तम्बाकू की खेती के लिए अत्यधिक जमीन एवं पानी की जरूरत पड़ रही है। अगर तम्बाकू के प्रति लोग नकारात्मक रवैया अपनाएं तो इस जमीन व पानी का इस्तेमाल जरूरी खाद्यान्न के उत्पादन में किया जा सकता है। यदि तम्बाकू का प्रचलन कम हो तो इन संसाधनों का उपयोग अधिक महत्वपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
यकीनन, इस संधि के तहत बहुत काम किया गया है, पर अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। ‘डब्ल्यूएचओ’ के और अन्य विशेषज्ञ इस संधि के तहत तम्बाकू पर टैक्स बढ़ाने, विज्ञापन व प्रायोजकों पर रोक लगाने, नए तम्बाकू व निकोटीन उत्पादों से पैदा हो रही चुनौतियों से निपटने जैसे विभिन्न उपायों को अपनाने पर बल दे रहे हैं। इस दिशा में सक्रियता से काम होना चाहिए।
साथ ही, तम्बाकू के प्रति नकारात्मक सामाजिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों को और सशक्त करने की आवश्यकता है। लोगों को यह समझाया जाना चाहिए कि तम्बाकू सेवन केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट है। यदि सरकारें, समाज और आम लोग मिलकर इस प्रयास को जारी रखें तो एक स्वस्थ और तम्बाकू मुक्त विश्व की कल्पना को साकार किया जा सकता है। (सप्रेस)