उत्तराखंड आन्दोलन आधुनिक भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो क्षेत्रीय अस्मिता, सामाजिक चेतना और अहिंसक संघर्ष का प्रतीक रहा है। यह आन्दोलन केवल एक नए राज्य की माँग तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके माध्यम से एक बेहतर समाज के निर्माण और न्यायसंगत व्यवस्था की स्थापना का संकल्प भी जुड़ा हुआ था।
इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियों पर दृष्टि डालनी होगी। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ के निवासियों को अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विकास की मुख्यधारा से कटे होने के कारण लोगों में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता आई, और धीरे-धीरे एक संगठित आन्दोलन का रूप लिया।
उत्तराखण्ड आंदोलनः अहिंसात्मक जनान्दोलन अर्चना डिमरी द्वारा लिखी गई समय साक्ष्य द्वारा प्रकाशित नवीनतम पुस्तक है। कुछ दिन पूर्व ही इस पुस्तक का पहला संस्करण प्रकाशित होकर आया है। यह पुस्तक उत्तराखंड राज्य की अवधारणा एवं आंदोलन के प्रति एक नये नजरिये को पेश करती है। यह पुस्तक उत्तराखंड राज्य की अवधारणा एवं आंदोलन के प्रति एक नये नजरिये को पेश करती है।यह पुस्तक मुख्यतः सात बड़े अध्यायों में बंटी है। पुस्तक में कुल 322 पृष्ठ हैं। यह पुस्तक उत्तराखण्ड को देखने की नई दृष्टि देती है।
इस पुस्तक में आन्दोलन की ऐतिहासिक यात्रा को सिलसिलेवार रूप में प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के माध्यम से आन्दोलन की पृष्ठभूमि, इतिहास, तत्कालीन परिस्थितियों, जन प्रतिनिधित्व और जन भागीदारी के विभिन्न रूपों को आम जनता तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है।

इस आन्दोलन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका अहिंसक स्वरूप था, जो महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रेरित था। आन्दोलनकारियों ने शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन, भूख हड़ताल और जनजागरूकता अभियानों के माध्यम से अपनी माँगें उठाईं। इस प्रक्रिया में उत्तराखंड के ग्रामीणों, महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस पुस्तक को तैयार करने में विभिन्न प्रामाणिक स्रोतों जैसे राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय अभिलेखागारों में संरक्षित दस्तावेज, आन्दोलन में सक्रिय लोगों के साक्षात्कार, समाचार पत्रों, उत्तराखंड राज्य निर्माण संबंधी विधेयकों, पत्र-पत्रिकाओं और शोध पत्रों का उपयोग किया गया है।
पुस्तक में इतिहासकार डा. शेखर पाठक के विचार उल्लेखनीय हैं, जो इस आन्दोलन को सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की लड़ाई के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि उत्तराखंड आन्दोलन केवल एक राज्य की माँग तक सीमित न होकर एक टिकाऊ सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के निर्माण की दिशा में बढ़ा हुआ कदम था।
आन्दोलनकारी श्री लोकेश नवानी के अनुसार, यह आन्दोलन उत्तराखंड के स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात के आंदोलनों जैसे कुली-बेगार, शिल्पकार सुधार, डोला पालकी और चिपको आन्दोलन का स्वाभाविक विस्तार था।
इसी क्रम में आन्दोलनकारी श्री विजय जुयाल, जिन्होंने 1100 गांवों का भ्रमण कर जनजागरूकता फैलाई, का मानना है कि इस आन्दोलन की सफलता का मुख्य आधार इसकी व्यापक जनभागीदारी थी।
पुस्तक की लेखिका डा. अर्चना डिमरी, जो उत्तराखंड आन्दोलन पर शोध करने वाली प्रथम महिला हैं, ने इसमें आन्दोलन की ऐतिहासिक प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए गहन शोध कार्य किया है। अर्चना डिमरी एक प्रतिष्ठित शिक्षिका और समाजसेवी हैं, जो वर्तमान में कन्या गुरुकुल परिसर, देहरादून के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में अध्यापनरत हैं। वे विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के माध्यम से जनचेतना कार्यक्रमों का संचालन कर रही हैं। वर्तमान में वे ‘महिला उत्तरजन’ संस्था की सचिव और ‘महिला उत्तरजन’ पत्रिका की सह-संपादक के रूप में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
अर्चना डिमरी के लेख और कविताएं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वे आकाशवाणी देहरादून के ‘महिला जगत’ और ‘बाल मंडल’ कार्यक्रमों की प्रस्तोता भी हैं। विभिन्न सामाजिक मंचों पर जनजागरूकता कार्यक्रमों के सफल संचालन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति, इतिहास, सभ्यता और पुरातत्व में विशेष रुचि रखने वाली अर्चना डिमरी धरोहर यात्राओं के आयोजन के माध्यम से इन पहलुओं को जनमानस तक पहुंचाने का कार्य कर रही हैं। उनकी शैक्षणिक और सामाजिक योगदान ने उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अर्चना डिमरी की यह पुस्तक न केवल इतिहास के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि आम पाठकों के लिए भी आन्दोलन की गहरी समझ प्रदान करती है। यह आन्दोलन न केवल उत्तराखंड, बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए एक प्रेरणास्रोत है और अहिंसक आंदोलनों के महत्व को दर्शाता है। यह पुस्तक हर वर्ग के पाठक और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है जिन्हें उत्तराखंड के सवाल पर उत्सुकता है।