24 कार्यकर्ताओं और आदिवासियों के प्रवेश पर दो माह की रोक पर नागरिकों ने जताई गहरी चिंता
मुंबई, 13 जून। ओडिशा के रायगडा जिले में शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित पर्यावरण दिवस कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस द्वारा किए गए उत्पीड़न और मनमाने तरीके से की गई गिरफ्तारी को लेकर देशभर के नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, वकीलों और जन संगठनों ने गहरी नाराजगी जताई है। उन्होंने इस घटना को लोकतांत्रिक अधिकारों का खुला उल्लंघन बताते हुए जिला प्रशासन की कड़ी निंदा की है।
अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के मौके पर जब कई सामाजिक कार्यकर्ता रायगडा पहुंचे, तो अलसुबह ही रेलवे स्टेशन से ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया। इनमें प्रख्यात कार्यकर्ता मेधा पाटकर, लिंगराज प्रधान, नरेंद्र मोहंती और हरा बनिया शामिल थे। ये सभी कार्यकर्ता सिजीमाली, कश्यपुर में प्रस्तावित अवैध बॉक्साइट खनन के खिलाफ एक जनसभा में भाग लेने के लिए स्थानीय संगठनों के आमंत्रण पर पहुंचे थे। पुलिस ने यह कहते हुए उन्हें जिले से बाहर कर दिया कि जिला कलेक्टर द्वारा 4 जून को जारी आदेश संख्या 1556/VII-14/2025 के तहत 24 कार्यकर्ताओं और आदिवासियों के रायगडा में प्रवेश और विरोध प्रदर्शन पर दो महीने की रोक लगाई गई है।
कार्यकर्ताओं ने जब यह स्पष्ट किया कि वे केवल शांतिपूर्ण कार्यक्रम में भाग लेने आए हैं, तब भी पुलिस ने उन्हें न केवल जबरन जिले से बाहर भेजा, बल्कि उन्हें दिनभर इधर-उधर घुमाकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। इसका स्पष्ट उद्देश्य था—उन्हें कार्यक्रम में भाग लेने से रोकना।
इस घटना के विरोध में नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स (NAPM) और नेशनल अलायंस फॉर जस्टिस, अकाउंटबिलिटी एंड राइट्स (NAJAR) के नेतृत्व में देशभर के चिंतित नागरिकों ने एक पत्र तैयार कर रायगडा कलेक्टर को भेजा है। यह पत्र ओडिशा के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, पुलिस अधीक्षक (रेगड़ा) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी प्रेषित किया गया है।
पत्र में नागरिकों ने इस आदेश को संविधान विरोधी, मनमाना और कानून के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण बताया है। उन्होंने कहा है कि इस प्रकार का प्रतिबंध स्थानीय निवासियों के साथ-साथ बाहर से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात है, जो संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति, आवाजाही और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकारों के विरुद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि कानून-व्यवस्था की काल्पनिक आशंका के नाम पर इतने व्यापक प्रतिबंध लगाना न तो उचित है और न ही न्यायसंगत।
विरोध कर रहे स्थानीय समुदायों की चिंताओं को रेखांकित करते हुए पत्र में यह भी कहा गया है कि सिजीमाली और आस-पास के इलाकों में खनन ने न केवल जंगलों और जल-स्रोतों को नष्ट किया है, बल्कि लोगों की आजीविका और सांस्कृतिक विरासत पर भी गंभीर आघात पहुंचाया है। यह क्षेत्र संविधान की पाँचवीं अनुसूची में आता है, जहाँ PESA कानून, 1996 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत ग्राम सभाओं को अपने संसाधनों की रक्षा का अधिकार है। लेकिन राज्य प्रशासन द्वारा इन अधिकारों की भी लगातार अनदेखी की जा रही है।
नागरिकों ने मांग की है कि रायगडा कलेक्टर का यह आदेश तुरंत और बिना शर्त वापस लिया जाए, शांतिपूर्ण आंदोलनों और ग्राम सभाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाए, और खनन का विरोध कर रहे लोगों को डराने-धमकाने, उन पर झूठे मुकदमे लगाने और उनकी गिरफ्तारी जैसे दमनकारी उपायों पर तत्काल रोक लगाई जाए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राज्य प्रशासन को स्थानीय समुदायों से लोकतांत्रिक संवाद कायम करना चाहिए और खनन के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर रोक लगानी चाहिए, जब तक कि जन सहमति और पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित न हो।
यह घटना न केवल ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में हो रहे संसाधनों के दोहन और जनता की आवाज को दबाने की प्रवृत्ति को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए अब देशभर के नागरिकों को एकजुट होकर खड़ा होना पड़ रहा है।
इस पत्र पर देश के विभिन्न हिस्सों से दर्जनों नागरिकों, अधिवक्ताओं, शोधकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन आंदोलनों से जुड़े लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। जिनमें यूथ फॉर हिमालय – हिमालय क्षेत्र, युवा संगठन, भूमि – नई दिल्ली, सामाजिक कार्यकर्ता (क्लाइमेट फ्रंट इंडिया, ALIYSA, यूथ फॉर हिमालय), मिनी मैथ्यू – मुंबई, अधिवक्ता, सुधीर पटनायक – भुवनेश्वर, मीडिया पेशेवर, सद्रिक प्राकाश – अहमदाबाद, मानवाधिकार व शांति कार्यकर्ता, लेखक, ए.वी.एस. कृष्ण चैतन्य – हैदराबाद, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, निकिता नायडू – हैदराबाद, जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ, अरुंधति धुरू – लखनऊ, सामाजिक कार्यकर्ता, NAPM, डॉ. संजय मंगलागोपाल – महाराष्ट्र, श्रमिक जनता संघ, डॉ. सुनीलम – मुलताई, किसान संघर्ष समिति, के. बाबू राव – हैदराबाद, मानवाधिकार फोरम, राजारामन – भुवनेश्वर, स्वतंत्र पत्रकार, माधुरी – मध्यप्रदेश, जागृत आदिवासी दलित संगठन, राजकुमार सिन्हा – जबलपुर, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ, लतिका मानसिंग राजपूत – धडगांव, महाराष्ट्र, सामाजिक कार्यकर्ता, खलीलुर रहमान – धारवाड़, कर्नाटक, NAJAR आदि उल्लेखनीय है।