अभ्यास मंडल की ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व डायरेक्टर जगदीप झोकर का संबोधन

इंदौर, 16 मई। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व डायरेक्टर जगदीप झोकर ने कहा है कि जब हमारे देश के नागरिकों को नागरिक होने की जिम्मेदारी का एहसास होगा तब हमारे देश में हकीकत में लोकतंत्र आएगा। इस समय जो राजनीतिक दल है वस्तुतः वह राजनीतिक समूह है और इनमें से किसी भी दल में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है।

वे आज यहां अभ्यास मंडल की 64वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यान माला को जाल सभागृह में संबोधित कर रहे थे। उनके संबोधन का विषय था- भारत में लोकतंत्र एवं चुनाव। वे एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के माध्यम से लोकतंत्र और चुनाव पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब हम लोगों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी और यह आग्रह किया था कि देश की जनता को यह मालूम पडना चाहिए कि जो व्यक्ति चुनाव लड़ रहा है उसका आपराधिक रिकॉर्ड क्या है? इस याचिका पर न्यायालय के द्वारा निर्देश जारी किया गया और साथ में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी की वित्तीय पृष्ठभूमि की जानकारी भी देने के लिए कहा गया। इस निर्देश का पालन करने में चुनाव आयोग और भारत सरकार के बीच में एक मत स्थिति नहीं बन सकी। उस समय पर हमने देखा कि न्यायालय के फैसले का क्रियान्वयन रोकने के लिए सारे राजनीतिक दल एक हो गए थे।

उन्होंने कार्यक्रम स्थल पर मौजूद श्रोताओं से सवाल किया कि देश में सरकार कौन चुनता है? तो जवाब आया कि हम यानी कि देश के नागरिक चुनते हैं। फिर यह पूछा गया कि जब हम मतदान के दिन मतदान केंद्र पर जाते हैं तो क्या करते हैं? तो जवाब आया कि हम वोट देते हैं। इस पर सवाल पूछा गया कि क्या हम किसी को भी वोट दे सकते हैं? तो जवाब आया कि नहीं जो प्रत्याशी हैं उनमें से किसी को भी वोट दे सकते हैं। फिर प्रश्न उठा की जो प्रत्याशी है यह कौन तय करता है, तो जवाब आया कि राजनीतिक दल तय करते हैं। फिर प्रश्न पूछा गया कि क्या हमारे द्वारा वोट देकर चुना गया प्रत्याशी संसद या विधानसभा में किसी भी प्रस्ताव पर अपनी इच्छा के अनुसार मत व्यक्त कर सकता है या वोट दे सकता है? तो जवाब आया कि नहीं। उसे अपनी पार्टी की व्हीप के अनुसार ही वोट देना होगा।

इन सारे तथ्यों को सामने रखते हुए झोकर ने कहा कि इसीलिए कहा जाता है कि हमारे देश का लोकतंत्र खोखला है। हमारा देश हकीकत में लोकतांत्रिक देश नहीं है‌। हम इस भ्रम में हैं कि हमारा देश लोकतांत्रिक देश है।

उन्होंने कहा कि हमारे देश के नागरिकों को जब तक खुद के नागरिक होने की जिम्मेदारी का एहसास नहीं होगा तब तक हमारे देश में लोकतंत्र नहीं आ सकता है। राजनीतिक दल के नाम पर पहचाने जाने वाले राजनीतिक समूह में से भी कोई भी ऐसा नहीं है जिसमें की अंदरूनी लोकतंत्र हो।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में चुनाव ईवीएम के माध्यम से होता है, यह मशीन बेलेटिंग यूनिट है जिसके साथ में कंट्रोल यूनिट, वीवीपेट और सिंबल लोडिंग यूनिट जुड़े हुए होते हैं। यह मशीन कितनी बेहतर तरीके से काम करती है इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि जितने वोट डाले जाते हैं और जीतने वोट गिने जाते हैं, उसकी संख्या में अंतर होता है। जिस दिन मतदान होता है उस दिन बताया जाता है कि 61% मतदान हुआ है और 11 दिन बाद मालूम पड़ता है कि 66% मतदान हुआ है। चुनाव की प्रक्रिया में हर स्तर पर गड़बड़ होती है। यदि हम यह सोचते हैं कि राजनीतिक दल इस गड़बड़ को ठीक करेंगे तो हम गलत सोचते हैं।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो राकेश सिंघई ने कहा कि हमारे देश में चुनाव की वर्तमान व्यवस्था में यदि कोई लोकतांत्रिक है तो वह नोटा है। जिसे वोट देने का भी कोई मतलब नहीं है। नेपाल में राजतंत्र को हटाकर लोकतंत्र लाया गया और अब वही के नागरिक कह रहे हैं कि हमें वापस राजतंत्र चाहिए। अमेरिका में केवल दो दल है। हमारे देश में कई दल है।

प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत नेताजी मोहिते, डॉ जितेन्द्र जाखेटिया, यश जायसवाल, सेवानिवृत्त एडीजी अनिल कुमार, दिलीप वाघेला और मयंक शर्मा ने किया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह निशा दुबे और दिलीप देव ने दिए। कार्यक्रम का संचालन ग्रीष्मा त्रिवेदी ने किया। अंत में आभार प्रदर्शन अशोक कोठारी ने किया।