इंदौर, 14 मई । प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. वेद प्रकाश मिश्र ने कहा है कि देश में 1952 में गठित पहले शिक्षा आयोग ने सिफारिश की थी कि कुल जीडीपी का कम से कम 6% हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया जाए, लेकिन आज तक यह लक्ष्य कभी हासिल नहीं हो सका। आजादी के सात दशक बाद भी शिक्षा पर अब तक अधिकतम 2.93% ही खर्च किया गया है, जो इस क्षेत्र की उपेक्षा और प्राथमिकता की कमी को दर्शाता है। यदि हर शिक्षित नागरिक एक गरीब व्यक्ति को शिक्षित करने का प्रण लें, तो देश में शिक्षा का परिदृश्य बदल सकता है।
डॉ मिश्रा आज यहां जाल सभागृह में अभ्यास मंडल की 64 वीं ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे। उनका विषय था ‘शिक्षा का व्यवसायीकरण और वर्तमान चुनौतियां’। उन्होंने कहा कि देश के आजाद होने के बाद जब संविधान का निर्माण किया जा रहा था, उस समय पर सबसे पहला प्रश्न यह था कि शिक्षा किसके लिए हो? उस समय पर हमारे संविधान के निर्माताओं ने तय किया कि यह शिक्षा सभी के लिए होना चाहिए। यह शिक्षा जाति, रंग ,लिंग, धर्म, पैसा जैसे किसी भी भेदभाव के बगैर दी जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में इस बात के लिए प्रावधान किया गया। इस शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में शिक्षा का व्यवसायिकरण कोई अनायास नहीं हो गया है। जब स्थान रिक्त किया गया तो उस स्थान को व्यवसायीकरण के द्वारा भरा गया है। जब देश आजाद हुआ था उस समय पर हमारे देश में साक्षरता की दर 2 फीसदी थी। उस समय पर हमारे देश में 17 मेडिकल कॉलेज चल रहे थे। इन कॉलेज में 960 सीट थी और देश की आबादी 30 करोड़ थी। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि उस समय पर हमारे देश में 1.02% आबादी को उच्च शिक्षा प्राप्त थी।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1952 में देश में पहला शिक्षा आयोग बनाया गया। इस आयोग के द्वारा जो अनुशंसा की गई उसमें यह कहा गया कि देश के कुल जीडीपी का 6% शिक्षा पर और 6% स्वास्थ्य पर खर्च किया जाए। उस समय से लेकर आज तक कभी भी बजट में 6% राशि शिक्षा को नहीं दी गई। अब तक के इतिहास में अधिकतम 2.93% राशि शिक्षा के लिए आवंटित की गई है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि फीस के अभाव में प्रतिभा पढ़ नहीं पाती है । आज देश में 810 चिकित्सा महाविद्यालय हैं, इसमें से 1991 के बाद 571 खोले गए हैं। इसमें 412 प्राइवेट चिकित्सा महाविद्यालय हैं। देश में 1146 विश्वविद्यालय हैं, इसमें से 85% प्राइवेट विश्वविद्यालय हैं । शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र कभी भी चैरिटी के लिए नहीं आता है बल्कि फायदे के लिए आता है ।
उन्होंने कहा कि प्राइवेट कॉलेज पहले अनुदान पर चलते थे। फिर बिना अनुदान के चलने लगे और आज कमाने के लिए चल रहे हैं। चुनौतियां कभी भी ना तो आसमान से आती है ना धरती में से निकलती है वह तो व्यवस्था के माध्यम से निर्मित होती है।
डॉ मिश्रा ने कहा कि चरित्र और व्यक्ति के निर्माण का कार्य शिक्षा के माध्यम से किया जाना चाहिए था। यह शिक्षा दो वर्गों में आम आदमी की शिक्षा और एक वर्ग की शिक्षा के रूप में बंट गई । आज हमारे देश में मात्र 28.5% लोग उच्च शिक्षा हासिल कर पा रहे हैं। सरकार के द्वारा यह लक्ष्य रखा गया है कि 2035 तक हम 50% लोगों तक उच्च शिक्षा को पहुंचा देंगे। इस आंकड़े से यह स्पष्ट है कि 72% लोग उच्च शिक्षा से वंचित है। वे शिक्षा के माध्यम से मिलने वाले अवसर से वंचित हैं। दुनिया के दूसरे देशों में 66% आबादी के पास उच्च शिक्षा है।
इस समय हमारे देश की असली ताकत 64% वह आबादी है जिसकी उम्र 35 वर्ष से कम है। हमारे देश के संविधान में शिक्षा की गारंटी तो दी है लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी नहीं दी है। वर्ष 1994 में नेक के द्वारा विद्यालय को अधिमान्यता देने का काम शुरू किया गया। देश में 9.6% विद्यालय अधिमान्य है और इसमें से भी 0.68 प्रतिशत विद्यालय के पास ए ग्रेड है। हमारे देश में 12% बच्चे ऐसे हैं जो की चौथी कक्षा में पढ़ने के लिए जाने के पहले स्कूल छोड़ देते हैं। यह स्थिति चिंताजनक नहीं बल्कि चिंतन का विषय है।
उन्होंने कहा कि यदि देश में शिक्षा के परिदृश्य को बदलना है तो हर एक शिक्षित नागरिक एक गरीब के बच्चे को शिक्षित करने की जिम्मेदारी का वहन करना चाहिए। देश में शिक्षा किसी के लिए उपलब्ध नहीं है तो कोई उसके खर्च के भार को उठाने में सक्षम नहीं है।
डॉ मिश्रा ने कहा कि हमने मेडिकल चिकित्सा की एक व्यवस्था विकसित करके वर्ष 2015 में देश में सामने रखा था, जिसे 2023 में वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई है। अब चिकित्सा शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र बन गया है जिसमें कि भारत सबसे पहले विश्व गुरु बन सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद शंकर लाल गर्ग ने कहा कि चिराग से ही नहीं शिक्षा से भी घर रोशन होते हैं। पहले के समय पर बच्चों का ऐसे स्कूलों में प्रवेश किया जाता था जहां पर उसकी कुटाई ज्यादा होती थी। आज के समय पर बच्चों का ऐसे स्कूलों में प्रवेश किया जाता है जहां उसके पिता के जेब की कटाई ज्यादा होती है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत शफी शेख, पुरुषोत्तम वाघमारे , आदित्य सिंह, मिर्जा हबीब बेग, नयनी शुक्ला व मयंक शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन कुणाल भंवर ने किया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह डॉ. भरत छापरवाल और राधेश्याम शर्मा ने भेंट किए। अंत में आभार स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने माना।