
झीलें और तालाब स्थानीय समाज के लिए पानी के अविरल स्रोत की तरह पहचाने जाते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि ये ही समाज अपने पडौस के इन जलस्रोतों को लगातार बिगड़ने में लगा हैं। क्या हो, यदि झीलों-तालाबों को कतिपय नदियों की तर्ज पर जीवित इकाई का दर्जा दे दिया जाए?
जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर की झीलों का पानी तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे ताजे पानी की आपूर्ति और पारिस्थितिक तंत्र को खतरा है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि झीलों के पानी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे सतह और गहरी पानी की परतें प्रभावित हो रही हैं। ‘नासा’ और ‘राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन’ के सहयोग से हुए एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में झीलों को तेजी से गर्म कर रहा है। 1980 से 2017 के बीच झीलों की सतह के पानी में 5.5 प्रतिशत और गहरे पानी में 18.6 प्रतिशत तक ऑक्सीजन कम हुई है। 2003 से 2023 के बीच 85 प्रतिशत झीलों में ‘हीटवेव’ यानि लू के दिन बढ़े हैं।
पानी गर्म होने से ऑक्सीजन घुलने की क्षमता घटती है। ‘हीटवेव्स’ का बढ़ता दायरा झीलों में करीब 7.7 प्रतिशत ऑक्सीजन की हानि के लिए जिम्मेदार है। यही नहीं,‘एल्गल ब्लूम’ (शैवाल प्रस्फुटन) की बढ़ती समस्या झीलों के जीवन के लिए नया खतरा है। खेतों के कीटनाशक और पशुओं के मल से पानी में नाइट्रोजन-फॉस्फोरस बढ़ा जिससे शैवाल फैले। ये शैवाल ऑक्सीजन सोखकर ‘डेड जोन’ बना रहे हैं। ‘एल्गल ब्लूम्स’ ने ऑक्सीजन की 10 प्रतिशत कमी में योगदान दिया। 55 प्रतिशत ऑक्सीजन की कमी का कारण लगातार बढ़ता तापमान है। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो सन् 2100 तक झीलों में 9 प्रतिशत ऑक्सीजन घट सकती है।
कब्जे के लिए सूखती, घरेलू व अन्य निस्तार के कारण बदबू मारती, पानी की आवक के रास्ते में खड़ी रुकावटों से जलहीन होती, सफाई न होने से उथली होती और जलवायु परिवर्तन से जूझती दुनियाभर की झीलें बीमार हो रही हैं। इसका असर समूची प्रकृति के साथ-साथ इंसान पर भी पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘अर्थ फ्यूचर’ के ताजा अंक में प्रकाशित शोध ने चेतावनी दी है कि जिस तरह मानव-स्वास्थ्य के लिए रणनीति बनाई जाती है, ठीक उसी तरह झीलों की तंदरुस्ती के लिए व्यापक नीति जरूरी है। इसके लिए अनिवार्य है कि झीलों को भी प्राणवान समझा जाए। इस शोध में 10 हेक्टेयर से अधिक फैलाव वाली दुनिया की 14,27,688 झीलों की सेहत का आंकलन किया गया है, जिनमें भारत की 3043 झीलें शामिल हैं।
यह समझना होगा कि झीलें जीवित प्रणालियां हैं, जिन्हें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन, प्रसन्न रहने के लिए स्वच्छ पानी, अपने भीतर जीव-जन्तु बनाए रखने के लिए संतुलित ऊर्जा और पोषक तत्वों की आपूर्ति की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे इंसान झीलों के प्रति निर्मोही हो रहा है, अपने साथ प्रकृति की इन अमूल्य धरोहरों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है। इंसान की ही तरह झीलें विभिन्न रोगों की शिकार हो रही हैं, जैसे-तेज बुखार अर्थात अधिक गरम होना, परिसंचरण (जैसे इंसान के शरीर में रक्त-संचरण), श्वसन, पोषण और चयापचय संबंधी मुद्दों से लेकर संक्रमण और विषाक्तता तक झील के स्वास्थ्य की समस्याएं हो सकती हैं।
झीलें बरसात से जितना पानी पाती हैं, उससे दुगना वाष्पित करती हैं। यदि बरसात कम होगी, गर्मी अधिक होने से वाष्पीकरण अधिक होगा और उथलेपन से उनकी भंडारण क्षमता घटेगी तो जाहिर है, झील की सेहत गड़बड़ाएगी। यदि झील की सेहत से बेपरवाही रही तो समूचे पर्यावरणीय तंत्र पर इसका असर होगा, जिसके चलते झील पर निर्भर बड़ी आबादी के सामाजिक-आर्थिक जीवन में भूचाल या जाएगा।
भारत का हर तालाब अपने आसपास भू-वैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरणीय महत्व की एक अनूठी कहानी समेटे हुए है। स्वस्थ झील-तालाब ‘वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों’ को पाने की राह में अतुलनीय पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं। यदि तालाब को बीमार होने से बचाने या फिर बीमार झील के उपचार की बेहतर रणनीति न बनाई जाए तो उसके आसपास रहने वाले लोग और वन्य जगत भी अस्वस्थ हो जाता है।
एक झील के पानी का निर्मल और पर्याप्त होना कई तरह से समूचे परिवेश के बेहतर स्वास्थ्य का परिचायक होता है। यह जलचरों, जैसे- कछुआ, मछली के पनपने और उनके आवागमन को प्रभावित करता ही है, पानी कम होने पर स्थानीय सामाजिक और राजनीतिक विग्रह भी उपजाता है। भारत जैसे देश में जहां, तालाबों के किनारे कई पर्व, मान्यताएं और धार्मिक गतिविधियां अनिवार्य मानी जाती हैं, उनका अस्तित्व ही झील की सेहत पर निर्भर है। झील-तालाब के बीमार होने से इलाके का कार्बन और ताप-अवशोषण प्रभावित होता है, जो जैव-विविधता की क्षति और बाढ़-सूखे के रूप में सामने आता है। स्थानीय समाज का जलस्रोत यदि सेहतमंद न हो तो जलजनित रोग बढ़ते हैं।
आखिर कोई झील बीमार कैसे होती है? यदि उसमें पानी की मात्रा कम है तो थोड़ी गर्मी में ही उसका तापमान बढ़ेगा, अधिक गर्मी हुई तो तेजी से वाष्पीकरण होकर जल- भंडार खाली होगा। तालाब- झील में ऑक्सीजन की मात्रा कम होना भी खतरनाक है। यह अन्य जलचरों और वनस्पति के लिए जानलेवा होता है। जलकुंभी या फिर पानी में अधिक मात्रा में दूषित अपशिष्ठ का मिलना, गंदे पानी का निस्तार ऑक्सीजन कम होने के मूल कारक हैं। इससे पानी की क्षारीयता भी बढ़ती है जो किसी तालाब के गंभीर बीमार होने का लक्षण है। गौर करें ठीक इंसान के स्वस्थ्य-शरीर की ही तरह झीलों को भी पर्याप्त ऑक्सीजन और अति-क्षारीयता या अम्लीयता से मुक्ति चाहिए होती है। एक बात और – यदि दरिया का पानी दुरुस्त न हो तो उससे उगने वाले उत्पाद भी पौष्टिक नहीं रहेंगे।
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि झीलों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। भारी जल-दोहन और बरसात की अनियमितता के कारण कई झीलों में जलस्तर तेजी से नीचे गिरा है, जबकि दूसरी तरफ पेयजल, सिंचाई और मछली पालन आदि में पानी की खपत बढ़ी है। इससे झीलों का पोषण गड़बड़ा जाता है, उसमें पोषक तत्वों की सांद्रता या तो अधिक हो जाती है या फिर बहुत कम हो जाती है। इस तरह झील का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। पोषक तत्वों की अचानक अधिकता होने से जलाशयों की ऊपरी सतह पर हरे रंग की परत जमती है। इसे वैज्ञानिक भाषा में ‘यूट्रोफिकेशन’ कहते हैं।
झीलों के जल का अधिक गरम होना और आयनीकरण के साथ अम्लीकरण, लवणीकरण और शैवाल के कारण बदरंग होना, ये सभी झील के चयापचय संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। खनन गतिविधियों, औद्योगिक प्रदूषण, वायुमंडल में सल्फर और नाइट्रोजन युक्त रसायनों के बढ़ने से पानी की ‘पीएच कीमत’ छह से कम हो जाती है। यदि पानी में पहले से नाइट्रिक और सल्फ्यूरिक एसिड हों तो यह और कम हो सकती है। यह तालाब-झील की पानी की गुणवत्ता के लिए घातक है और इससे कई संवेदनशील सूक्ष्मजीवों, पौधों और जानवरों के विकास और प्रजनन पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। कई बार मछलियाँ इसके चलते मर जाती हैं।
आज आवश्यकता है कि देश के हर जलाशय की साल में दो बार जल गुणवत्ता की जांच हो और यदि किसी तरह का असंतुलन हो तो त्वरित उपचार किया जाए। किसी भी तालाब के आसपास पारंपरिक पेड़ों की प्रजातियों, उन पर बसने वाले पक्षियों के पर्यावास और झीलों-तालाबों में मछली या अन्य उत्पाद उगाने के लिए किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशक या पोषक के इस्तेमाल पर रोक लगे। झीलों में जमा गाद की नियमित सफाई के अलावा, उसमें कीटनाशकों के इस्तेमाल, बाहरी प्रजाति की मछलियों के बीज डालने, नालियों को जोड़ने पर पाबंदी के साथ-साथ किसी भी झील के नैसर्गिक जल-आवक मार्ग को अविरल बनाए रखना अनिवार्य है। (सप्रेस)