भोपाल, 13 जून। हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन ने देशभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर युवाओं और नागरिक समाज में नई चेतना और सक्रियता पैदा की है। अब केरल से लेकर जम्मू तक युवा पर्यावरण के सवालों पर एकजुट होकर आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
यह बात अंतरराष्ट्रीय गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद् और हसदेव आंदोलन के अगुवा आलोक शुक्ला ने गांधी भवन, भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में कहीं। वे हसदेव जंगल बचाने के लिए किए गए संघर्ष पर पर्यावरण प्रेमियों से चर्चा कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि समुदाय और समाज के लोग प्राकृतिक संसाधनों को बचाना चाहते हैं लेकिन कारपोरेट के दबाव में सरकार जंगलों को नष्ट करने में लगी है। आने वाले समय में जंगल को बचाने के लिए जन आंदोलनों में जनभागीदारी को बढ़ाना होगा। सरकार और कारपोरेट की मिलीभगत के विरोध में जनसंघर्ष को तेज करना होगा।

उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य सरकारें नियमों और वैज्ञानिक रिपोर्टों की अवहेलना करते हुए कारपोरेट घरानों से प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करवाने में लगी है। भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कार्बन उत्सर्जन घटाने की बात करती है, लेकिन देश के अंदर जंगल काटने की खुली छूट दे रही है।
शुक्ला ने बताया कि केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के वन्य जीव संस्थान ने भी इसका संरक्षण किए जाने पर जोर दिया। इसके बाद भी कारपोरेट घरानों के दबाव में शासन की अध्ययन रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया गया। ग्राम सभाओं में गलत तरीके से प्रस्ताव पारित किए गए।

जल , जंगल, जमीन के संरक्षण की पैरवी करने वालों को शासन, प्रशासन की ओर से लगातार परेशान किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों की लूट से आदिवासी समुदाय के जीवन भी संकट बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है। जंगल के नष्ट होने का असर आदिवासी समुदाय ही नहीं हर समाज, समुदाय पर देखा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि समाज के हर वर्ग को नुकसान होने के बाद भी खनन माफिया को जल, जंगल, जमीन खत्म करने की अनुमति शासन की ओर से दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
शासन और कारपोरेट की मिलीभगत से पर्यावरण खत्म करने की मुहिम को यदि समय रहते नहीं रोका गया तो आनेवाली पीढ़ी के लिए जीना मुश्किल हो जाएगा।
कार्यक्रम की शुरुआत में वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान ने कहा कि विकास के नाम पर देशभर में जंगलों का सफाया किया जा रहा है और यह बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में आलोक शुक्ला जैसे कार्यकर्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो न सिर्फ प्रतिरोध की आवाज़ बने हुए हैं, बल्कि दूसरों को भी जोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आदिवासियों का नहीं, हम सबका सवाल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि आज जंगल नहीं बचे, तो कल समाज नहीं बचेगा। अंत में सत्यम ने आभार प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में शहर के अनेक प्रबुद्धजन, पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।