
इन दिनों शीतलपेय की आक्रामक मंडी थोड़ी ठंडी दिखाई दे रही है। हर साल की तरह भांति-भांति के शीतलपेय बढ़ती गर्मी से निपटने के लिए बाजारों में नहीं आए हैं। कहा जा रहा है कि इसकी वजह एक नया, जमा-जमाया शीतलपेय है जिसे ‘रिलायंस’ ने खरीदकर फिर से बाजार में उतारा है। क्या हैं, इसके तौर-तरीके?
जून में कायदे से गर्मी की, लू की, लू से मरने वालों की और गर्मी की बीमारियों की चर्चा होनी चाहिए, एसी-कूलर की बिक्री की चर्चा होनी चाहिए, पर हो रही है आंधी-तूफान-बारिश और जल-जमाव की। इससे भी कम चर्चा है, गर्मी में सर्दी के नाम पर आग लगाने वाली कोल्ड-ड्रिंक कंपनियों की लड़ाई की। गर्मी के साथ ‘इंडियन प्रीमियर लीग’ (आईपीएल) का सीजन भी बीत गया और जिस क्रिकेट और ‘आईपीएल’ को बहाना बनाकर पेप्सी और कोक महाभारत सी जंग लड़ा करते थे, उस ट्राफी का प्रायोजक बनने की लड़ाई लड़ते थे, वह न होने पर एक आभासी युद्ध लड़ते थे, विपणन और विज्ञापन जगत अपनी प्रतिभा को इस सीजन के लिए बचाकर रखता था, वह सब इस सीजन कहीं नहीं दिख रहा।
एक खामोशी है, जबकि शीतल पेय बाजार तो झाग में, सनसनी में ही ज्यादा भरोसा करता है। उसके बिना न तो चार पैसे की चीज पंद्रह और बीस रुपए में बेची जा सकती है, न एक गैर-जरूरी और एक हद तक नुकसानदेह पेय को हम-आप शान से पी सकते हैं। इसी के सहारे दो बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हजारों करोड़ का कारोबार कर चुकी हैं और सारे देसी ब्रांड लगभग समाप्त कर चुकी हैं। शीतल-पेय गाँव-देहात में भी मिलता है, फैशन की चीज बन गया है, पर इस बार की शांति एक और कारण से ज्यादा चुभने वाली है।
इस बार शीतल-पेय बाजार में एक नया खिलाड़ी उतरा है जिसने दमदार दखल दी है। बाजार में आने के साथ ही उसने एक बड़े हिस्से पर कब्जा किया है, स्थापित ब्रांडों को झकझोरा है, वितरकों को निहाल कर दिया है। ग्राहक भी पुरानी कीमत में पेय की मात्रा लगभग दोगुनी पाकर खुश हैं और लग रहा है कि देश का शीतल पेय बाजार बदलने जा रहा है। दशकों पहले मर से गए एक ब्रांड, ‘कैम्पा कोला’ को ‘पार्ले ड्रिंक्स’ वाले चौहान से मामूली कीमत पर खरीदकर मुकेश अंबानी और ‘रिलायंस’ ने एक नए कारोबार में पैर बढ़ाए हैं और वहां के सारे समीकरण बदल दिए है। प्रतिद्वंद्वी ब्रांडों ने कीमत कम की है, मात्रा बढ़ाने की कोशिश भी हो रही है, लेकिन ग्राहक और नीचे तक के वितरक दूसरे ब्रांड से पट जाएं तो काम आसान नहीं रहता। ‘पेप्सी’ और ‘कोक’ की तरफ से अभी जबाबी हमला नहीं हुआ है, लेकिन बाजार तो बदलता दिखता है। जानकार मानते हैं कि ‘कैम्पा’ का शेयर दहाई में आ चुका है।
जिस ‘आईपीएल’ के प्रसारण में ‘कोक’ और ‘पेप्सी’ तथा भारत में बिकने वाले उनके सबसे लोकप्रिय ब्रांड ‘थम्सअप’ के नए-नए विज्ञापनों की बाढ़ रहती थी, एक-दूसरे को ‘गुलाब जामुन’ और घटिया स्वाद वाला बताया जाता था, जिस लाल को अपना और नीले को दुश्मन बताया जाता था, वैसा इस बार कुछ नहीं है। दक्षिण के एक हीरो का बहुत औसत किस्म का विज्ञापन ही बार-बार दोहराया जा रहा था और सूचना दे रहा था कि ‘कोक-पेप्सी’ दौर के पहले जिस ‘कैम्पा’ का जलवा था, वह वापस लौट आया है। ‘पेप्सी’ ने ‘पार्ले ड्रिंक्स’ से काफी कुछ खरीदा था, लेकिन इन ब्रांडों को मरने के लिए छोड़ दिया था।
पुराने मालिक ‘बिसलेरी’ में ऐसे लग गए कि इन ब्रांडों को सचमुच भूल गए। उनको ‘कोक-पेप्सी’ की लड़ाई में गुंजाइश नहीं लगी। अब ‘रिलायंस’ ने नए क्षेत्र में उतरने के फैसले के साथ इस पुराने ब्रांड पर दांव लगाया है। जानकार मानते हैं कि ‘रिलायंस’ बड़े स्तर के व्यापार, ग्राहक और वितरक को ज्यादा-से-ज्यादा लाभ देने की रणनीति से धमका रहा है। सांसदों और सरकार के सहारे कायदे-कानून बदलवाना, बाजार और विज्ञापन जगत में मारकाट की ‘पेप्सी’ और ‘कोक’ वाली रणनीति उसने नहीं अपनाई है।
अपने पाँव जमाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने तथा बड़ी संख्या में सांसद जुटाकर अपना कानून बनवाने वाली ‘पेप्सी’ के लिए यह भी कहा जाता है कि उसने एक आयात के बदले तीन निर्यात वाला प्रलोभनकारी दांव भी धोखे वाला खेला और जाने किस प्रभाव में समाजवादी कहलाने वाले मंत्री शरद यादव ने उस करार पर दस्तखत कर दिए। उस करार में यह नहीं लिखा था कि शीतलपेय का ‘कन्संट्रेट’ जितनी मात्रा में आयात होगा, निर्यात भी शीतलपेय का ही होगा।
हमने देखा कि ‘पेप्सी’ ने किस तरह छोटे निर्यातकों को थोड़े ज्यादा पैसे देकर उनके बासमती, चाय, झींगा, मसाले और इसी तरह की चीजों की खेप पर अपना मोहरा लगाकर, अपने निर्यात का कोटा पूरा किया। उसने एक पैसे का भी शीतलपेय निर्यात नहीं किया।कानून बदलते ही ‘कोक’ भी पधार गया तथा स्वदेशी की ठेकेदारी करने वाले रमेश चौहान ने एक मोटा पैसा लिया और ज्यादातर धंधों से हाथ खींच लिया। उसके बाद काफी कुछ हुआ, लेकिन एक अजीब बात हुई कि ‘थम्सअप’ ही बाजार-लीडर बना रहा। यह एक अर्थ में शीतलपेय बाजार में देसी स्वाद के बने रहने का प्रमाण था।
संभव है मुकेश अंबानी और उनकी टोली को यह चीज ‘कैम्पा’ के तीनों ब्रांड उतारने की बड़ी वजह लगी हो, पर उनसे भी पहले यह बात ‘पेप्सी’ जैसी कंपनी को समझ आ गई थी-लस्सी, नींबू पानी और सत्तू का शरबत पीने वालों से भी खतरा देखकर उसने पहले साल से ही आलू, टमाटर, कीनू, अमरूद, अनन्नास वगैरह की खेती और स्नैक्स के कारोबार में हाथ लगाया। नमकीन, भुजिया और चिप्स का धंधा भी जोर-शोर से शुरू किया।
देखा-देखी ‘हल्दी राम’ और ‘बीकानेरवाला’ टाइप स्थानीय स्नैक-निर्माताओं ने भी बाजार में प्रवेश किया और अब ‘पेप्सी’ वहां आराम की स्थिति में है। पिछले साल का उसका मुनाफा 883 करोड़ का रहा था, जबकि उसने शीतल पेय के धंधे से लगभग हाथ खींच लिया है। वह अब सिर्फ ‘कन्संट्रेट’ आयात करके अपने ‘फ्रेंचाईजी’ वालों को देता है। ‘वरुण ब्रेवरीज’ को ही लगभग पूरा काम दे दिया गया है। दूसरी ओर ‘कोक’ के बारे में यह माना जाता है कि उसको भी हिन्दुस्तानी बाजार से ज्यादा लाभ नहीं हो रहा है। उसका धंधा एशिया क्षेत्र में होता है जिसमें जापान जैसे लाभ वाले देश हैं, इसलिए उसका घाटा या कम मुनाफा छुपा रहता है। इन सबके मद्देनजर और बाजार के शुरुआती नतीजों से लगता है कि ‘रिलायंस’ ने एक और बाजार को मुट्ठी में करने की पहल कर दी है। (सप्रेस)