राज कुमार सिन्हा

विश्व पर्यावरण दिवस केवल प्रतीकात्मक आयोजन नहीं, बल्कि धरती की रक्षा के प्रति हमारी सामूहिक जवाबदेही का अवसर है। इस वर्ष का विषय ‘प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना’ हमें चेताता है कि यदि अब भी नहीं चेते, तो यह संकट जल, जीवन और जलवायु को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है। प्लास्टिक का फैलता खतरा हमारे स्वास्थ्य, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को धीरे-धीरे निगल रहा है – यह चेतावनी नहीं, एक अलार्म है।

World Environment Day

वर्ष 1972 में पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु इस दिवस को मनाने की घोषणा ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने की थी। हर साल मनाया जाने वाला यह  दिवस दुनिया भर के लाखों लोगों को हमारे ग्रह की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के साझा मिशन के साथ आता है।

‘विश्व पर्यावरण दिवस 2025’ का विषय है – ‘प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना।’ यह विषय प्लास्टिक की खपत को कम करने, रीसाइक्लिंग सिस्टम को बेहतर बनाने और टिकाऊ विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए चल रही अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है। यह दिन सरकारों, व्यवसायियों और लोगों के लिए प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ़ कार्रवाई करने और स्वच्छ, स्वस्थ ग्रह को बढ़ावा देने वाली नीतियों का समर्थन करने का एक अवसर है।

कोरिया गणराज्य 5 जून, 2025 को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ की मेज़बानी करेगा, जिसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना है। प्लास्टिक प्रदूषण एक व्यापक पर्यावरणीय समस्या है जो दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। साल 1950 में दुनिया में प्लास्टिक उत्पादन 2 मिलियन टन था, जो साल 2021 में बढकर 390 मिलियन टन हो गया है।

एक अध्ययन के मुताबिक 2.2 करोड़ टन प्लास्टिक पर्यावरण में मिल गया है जिसमें से 60 लाख टन नदियों, तालाबों और सागरों में गया है। ‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका में रोहिणी कृष्णमूर्ति की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक बन गया है। यहां सलाना 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक निकलता है जो वैश्विक प्लास्टिक उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा है।

प्लास्टिक के बेहद महीन कण, माइक्रो-प्लास्टिक के रूप में आज पूरी दुनिया में हावी हो चुके हैं। पृथ्वी पर मौजूद पानी का केवल कुछ हिस्सा, लगभग 0.3 प्रतिशत ही पीने लायक है। भारत में जल-प्रदूषण पहले से ही एक चिंता का विषय है, प्लास्टिक और कचरे के लीक होने से दुनिया का पानी खतरे में है। भूजल और जलाशय का पानी विषाक्त पदार्थों के रिसाव के कारण अतिसंवेदनशील है। यह न केवल पर्यावरण, बल्कि इंसानी स्वास्थ्य और जैव-विविधता के लिए भी बङा संकट है।

समुद्री जीवन, मिट्टी की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालने के अलावा प्लास्टिक कचरा वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 3 से 4 प्रतिशत का योगदान देता है। प्लास्टिक प्रदूषण अब नए चिंताजनक स्तर पर पहुँच गया है। ‘टॉक्सिकोलॉजिकल साइंसेज’ में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कण अब मां के गर्भाशय तक पहुँच गए हैं। यह अध्ययन अमेरिका की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मेक्सिको’ के ‘हेल्थ साइंसेज’ विभाग के वैज्ञानिकों ने किया है। ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित शोध के प्रमुख लेखक सैमुअल पोटींगर के अनुसार यदि विश्व में प्लास्टिक उत्पादन पर प्रतिबंध नहीं लगाए गए तो 2050 तक प्लास्टिक प्रणाली से होने वाले वार्षिक ‘ग्रीन हाउस गैस’ उत्सर्जन में 37 फीसदी की वृद्धि होगी।

एक नए वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि 2018 में दुनियाभर में दिल की बीमारी से हुई 3,56,000 से ज्यादा मौतों का संबंध प्लास्टिक उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले एक विशेष रसायन ‘डाइ-2-एथाइलहेक्सिल फ्थेलेट’ (डीईएचपी) से था। यह रसायन प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसे मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा माना जा रहा है। चिंता की बात यह है कि इस मामले में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी, जहां ह्रदय रोग से होने वाली 1,03,587 मौतों के लिए कहीं न कहीं यह केमिकल भी जिम्मेवार था।

भारत में ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016’ देश में पर्यावरण की दृष्टि से स्वस्थ प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वैधानिक ढांचा प्रदान करता है। नियम शहरी स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक कचरे के संग्रह सहित प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन करने का आदेश देता है। नियमों के तहत, शहरी स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को सुनिश्चित करना होगा कि प्लास्टिक कचरे को खुले में न जलाया जाए। मध्यप्रदेश में धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों में जिला प्रशासन ने पॉलीथीन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही 100 माइक्रोन से कम के पॉलीथीन और वन टाइम यूज्ड प्लास्टिक की सामग्री को प्रतिबंधित किया गया है।

दूसरी ओर हम अपनी वर्तमान जीवनशैली को बनाए रखने के लिए अत्यधिक ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं और पारिस्थितिकी तंत्र हमारी मांगों को पूरा नहीं कर पा रहा है। विश्व में पौधों और जानवरों की अनुमानित 8 मिलियन प्रजातियों में से एक मिलियन विलुप्त होने की कगार पर हैं। पृथ्वी की 75 प्रतिशत भूमि मानवीय गतिविधियों के कारण परिवर्तित हो चुकी है, जिसमें 85 प्रतिशत आर्द्रभूमि क्षेत्र भी शामिल हैं। महासागर क्षेत्र का 66 प्रतिशत हिस्सा मानवीय गतिविधियों से प्रभावित है, जिसमें मत्स्य पालन और प्रदूषण भी शामिल है। विश्व के लगभग 90% समुद्री मछली भंडार का पूर्णतः दोहन हो चुका है।भारत के ऋषि – मुनि जानते थे कि पृथ्वी का आधार जल और जंगल हैं इसलिए उन्होंने पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा है- ‘वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव:’ अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। भारत में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को मां स्वरूप माना गया है, परन्तु हमने इस सीख को भुलाकर विनाश का रास्ता पकड़ लिया है। (सप्रेस)