
इस समय विश्व में लगभग 13000 परमाणु हथियार है जो मनुष्यों समेत धरती के अधिकांश जीवों को अनेक बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। सबसे बड़े दुख और आश्चर्य की बात है कि ऐसी खतरनाक स्थितियों की जानकारी बार-बार मिलते रहने के बाद भी विश्व नेत्तृत्व इस बारे में कोई असरदार कार्यवाही नहीं कर पाए हैं व यह बेहद खतरनाक स्थितियां पहले से और अधिक बिगड़ती ही रही हैं।
आज विश्व के अधिकांश प्रतिष्ठित वैज्ञानिक इस सोच से सहमत हैं कि धरती की मूल जीवनदायिनी क्षमताएं संकटग्रस्त हो चुकी हैं। यह स्थिति एक ओर लगभग दर्जन भर गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं के कारण उत्पन्न हुई है तथा दूसरी ओर महाविनाशक हथियारों, विशेषकर परमाणु हथियारों के कारण उत्पन्न हुई है। इस समय विश्व में लगभग 13000 परमाणु हथियार है जो मनुष्यों समेत धरती के अधिकांश जीवों को अनेक बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं।
सबसे बड़े दुख और आश्चर्य की बात है कि ऐसी खतरनाक स्थितियों की जानकारी बार-बार मिलते रहने के बाद भी विश्व नेत्तृत्व इस बारे में कोई असरदार कार्यवाही नहीं कर पाए हैं व यह बेहद खतरनाक स्थितियां पहले से और अधिक बिगड़ती ही रही हैं।
इस स्थिति में बड़ा सवाल हमारे लिए यह है कि हम जनसाधारण इस बारे में क्या करे। जहां एक ओर इस सबसे महत्त्वपूर्ण संदर्भ में विश्व नेत्तृत्व की विफलता हमारे सामने है, वहां दूसरी ओर जनसाधारण के लिए यह स्पष्ट नहीं है कि इस स्थिति में हमारी क्या भूमिका हो सकती है। अपना यह कर्तव्य तो प्रतीत होता है कि इस बिगड़ती स्थिति को संभालने के लिए कुछ करें, पर यह स्पष्ट नहीं है कि ठीक ठीक क्या करें। जब विश्व के बड़े नेता और संस्थान ही अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं, तो हम क्या कर सकते हैं और कुछ करें भी तो हमारे करने न करने से क्या कुछ फर्क पड़ने वाला है।
इस स्थिति में यह जोर देकर रेखांकित करना जरूरी है कि तमाम कठिनाईयों के बीच भी हम जनसाधारण बहुत कुछ कर सकते हैं। बेशक हमारे प्रयास चाहे छोटे ही होंगे, पर जब लाखों सार्थक प्रयास छोटे स्तरों पर होंगे तो इन लाखों छोटे प्रयासों से ही बड़े बदलाव आ सकते हैं।
आज एक ओर कई तरह से जलवायु बदलाव का खतरा बढ़ रहा है। दूसरी ओर कई बहुत छोटे प्रयास बहुत छोटे और कम साधनों वाले किसानों द्वारा प्राकृतिक खेती की दिशा में हो रहे हैं। ऐसे प्रयासों से मिट्टी की गुणवत्ता सुधर रही है, मिट्टी की कार्बन सोखने की क्षमता बढ़ रही है, रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग न होने से फॉसिल फ्यूल का बोझ कम हो रहा है। प्राकृतिक मिश्रित खेती में पेड़ अधिक होते हैं व वह भी कार्बन सोखते हैं। यह सभी छोटे किसान जो प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं वह भी तो जलवायु बदलाव का संकट कम कर रहे हैं। जब ऐसे लाखों किसान ऐसा ही करेंगे तो जलवायु बदलाव का संकट कम होगा ही नहीं।
हाल ही में ललितपुर जिले में ऐसे दो बहुत छोटे दलित किसानों मनिराम व शांति से मिला। छोटा सा बहुत प्यारा सा उनका खेत व बगीचा है। नीलगाय रात को फसल चर न जाए, अतः पति-पत्नी दोनों रात को खेत पर ही पहरा देते हैं। दिन-रात की मेहनत है, फिर भी दोनों बहुत प्रसन्न नजर आए। प्राकृतिक खेती के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। रासायनिक खाद व कीटनाशक के उपयोग पर उन्होंने कहा – इतनी मेहनत कर दूसरों को ऐसा कुछ खाने को दें तो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, तो ऐसी मेहनत का क्या लाभ? हम तो खुद भी अच्छे स्वास्थ्य का खाद्य चाहते हैं व दूसरों को भी स्वस्थ खाद्य ही देना चाहते हैं। हम प्राकृतिक खेती को कभी नहीं छोड़ेंगे।
मैंने पूछा – सबने टैक्टर अपना लिया है तो आपने क्यों नहीं अपनाया?
मनिराम ने कहा – मेरे बैल तो मेरे हीरा-मोती हैं, उन्हें मैं कभी नहीं छोडूंगा।
प्रसन्न होकर मैंने कहा – आप इतनी मेहनत कर थकते नहीं हैं?
मनिराम ने अपनी पत्नी की ओर संकेत कर कहा – सबसे अधिक मेहनत तो यह करती है।
इन दोनों प्रसन्न पति-पत्नी को शायद यह अहसास ही नहीं है कि वे जलवायु बदलाव के संकट को कम करने वाले अमन-शांति के योद्धा हैं, पर इस तरह के लाखों छोटे प्रयासों से ही तो बड़े संकट भी दूर होंगे।
हम अपने आसपास के पर्यावरण संकट को दूर करते हैं तो हमारे इन छोटे-छोटे लाखों प्रयासों से विश्व के अनेक पर्यावरणीय संकट दूर करने में बहुत मदद मिलती है।
इसी तरह यदि विश्व में अमन-शांति स्थापित करनी है व इसके साथ महाविनाशक हथियारों के खतरों को दूर करना है तो इसके लिए भी हमारे आसपास के अमन शांति के छोटे प्रयास बहुत उपयोगी हैं। इन प्रयासों द्वारा हम बार-बार सांप्रदायिकता व भेदभाव के विरुद्ध माहौल बनाते हैं व तरह-तरह के वैर-भाव फैलाने वाले मिथकों व भ्रामक प्रचार को दूर करते हैं। इन प्रयासों के दौरान हम सीखते हैं कि धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र के भेदभावों को दूर करते हुए हम कैसे एक बेहतर समाज के लिए रचनात्मक कार्य कर सकते हैं।
यही तो विश्व स्तर पर भी चाहिए कि लोग नाहक पैदा किए वैर-भावों को दूर कर अमन-शांति पर आधारित दुनिया बनाएं। अतः यदि अमन-शांति के ऐसे लाखों छोटे प्रयास निरंतरता से होते रहे, तो वे एक बेहतर अमन-शांति पर आधारित दुनिया बनाने में अवश्य सहायक सिद्ध होंगे। (सप्रेस)