भीकमपुर (राजस्थान), 15 मई । पानी की बूंदों से जीवन के ताने-बाने को बुनने वाला संगठन तरुण भारत संघ इस वर्ष अपने स्वर्ण जयंती वर्ष में प्रवेश कर चुका है। पिछले 50 वर्षों में जल और समाज के रिश्ते को मजबूत करते हुए, संघ ने 23 से अधिक छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने का ऐतिहासिक कार्य किया है। अब अपने स्वर्णिम वर्ष में तरुण भारत संघ ने एक और व्यापक पहल की शुरुआत की है—“आओ नदी को जानें” अभियान।

इस अभियान के अंतर्गत तरुण भारत संघ से जुड़ी जल बिरादरी ने भारत की सैकड़ों नदियों पर जन-जागरूकता और पुनर्जीवन यात्राएं शुरू की हैं। उद्देश्य है — नदियों की वर्तमान स्थिति को जानना, समझना और समाज को उनके संरक्षण व पुनर्जीवन से जोड़ना।

महाराष्ट्र में जल बिरादरी ने 117 नदियों पर राज्य सरकार के साथ मिलकर ‘चला जानूया नदीला’ कार्यक्रम शुरू किया है। इस पहल में हर नदी की स्टेटस रिपोर्ट भी तैयार की जा रही है, जिसमें उसका इतिहास, भूगोल और आज की स्थिति का ब्यौरा दर्ज किया जा रहा है।

आंध्र प्रदेश में सत्यानारायण बुलिसेट्टी ने कृष्णा नदी की उद्गम से संगम तक की यात्रा की शुरुआत की है, जो 9 मई को हंसलम देवी समुद्र तट से शुरू हुई और महाविलेसवरम तक पहुंचेगी।

इसी तरह कर्नाटक में डॉ. राजेन्द्र पोद्दार ने कुडलसंगम से नदी यात्रा का आगाज़ किया है। हैदराबाद से वी. प्रकाश राव और ओडिशा में सुदर्शन दास ने वैतरणी नदी पर यात्राएं शुरू की हैं।
कोना और सोने नदी पर अशोक ठक्कर और उनकी टीम ने विविध यात्राओं का आयोजन किया है।

अतीत से वर्तमान तक : अनुभवों का समागम

तरुण भारत संघ के संस्थापक और जल योद्धा डॉ. राजेन्द्र सिंह ने स्वयं अरवरी नदी की यात्रा की शुरुआत की है। वर्ष 1995 में इस नदी को पुनर्जीवित करने वाले लोगों को इस यात्रा के दौरान पुनः सम्मानित किया जा रहा है। इसी प्रकार चंबल क्षेत्र की सैरनी नदी को जीवन देने वाले 63 स्थानीय साथियों को भी हाल ही में सम्मानित किया गया। अब नेहरो, तेवर, बदह और भवानी जैसी चंबल क्षेत्र की अन्य छोटी नदियों की यात्राएं रणबीर और मुकेश जैसे तरुण भारत संघ के युवा साथी कर रहे हैं।

तरुण भारत संघ का मानना है कि नदी पुनर्जीवन केवल तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि स्थानीय भू-सांस्कृतिक समझ और सहभागिता का परिणाम है। इसीलिए वह प्रत्येक क्षेत्र की पारंपरिक जल संरचनाओं, वहां की मिट्टी-पत्थर और लोगों की समझ के आधार पर पुनर्जीवन कार्य करता है। स्थानीय संसाधनों से बनी जल संरचनाएं दीर्घकालिक परिणाम देती हैं, यह तरुण भारत संघ का अनुभव है।

तरुण भारत संघ की बुनियाद इसी विचार पर रखी गई थी — कि बाढ़ और सुखाड़ से मुक्ति के लिए भूजल पुनर्भरण आवश्यक है। वर्षाजल को धरती के गर्भ में भेजने की विधियां, समुदाय की भागीदारी और संयमित उपभोग—इन्हीं सिद्धांतों पर यह संगठन आज भी कार्यरत है।

30 मई 2025 को तरुण भारत संघ भीकमपुर स्थित अपने आश्रम में अपने पुराने साथियों के साथ स्वर्ण जयंती वर्ष का आयोजन करेगा। चूंकि भीषण गर्मी के चलते बड़े आयोजन से परहेज किया गया है, यह आयोजन सीमित साथियों की मौजूदगी में एक आत्म-चिंतन और भावनात्मक पुनः संकल्प का अवसर होगा।

नदी पुनर्जीवन केवल जल संरक्षण का मुद्दा नहीं, यह संस्कृति, सभ्यता और समाज की चेतना का पुनर्सृजन है — यह तरुण भारत संघ की आधी सदी की यात्रा का सार है। स्वर्ण जयंती वर्ष में यह संगठन पूरे देश को यह याद दिला रहा है कि जहां नदियां जीवित होती हैं, वहां जीवन मुस्कराता है।