नर्मदा बचाओ आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से बड़वानी में कुंडिया गाँव के जगन्नाथ काका का अल्प‍ बीमारी के बाद 17 सितंबर 2020 को सुबह निधन हो गया है। वे करीब 90 वर्ष के थे। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार आज दोपहर 1 बजे मलवाड़ा स्थित नर्मदा तट पर किया गया।

जगन्नाथ काका नर्मदा घाटी के किसान-आदिवासियों की लड़ाई के हर पड़़ाव के साक्षी रहे तथा वृद्धावस्था के बावजूद वे अपने अंतिम समय एक युवा की तरह सक्रिय बने रहे। वे हमेशा किसानों को जमीन दिए जाने के पक्षधर रहे हैं। सभी के न्यायपूर्ण पुनर्वास की माँग करते हुए उन्होंने अब तक न तो अपने घर का सर्वे करवाया है और न ही सरदार सरोवर से डूबी अपनी करीब 20 एकड़ जमीन का मुआवजा स्वीकार किया। खेती की जमीन की माँग वाला उनका केस सर्वोच्च न्यायालय में अभी भी विचाराधीन है।

पिछले साल 17 सितंबर 2019 को प्रधानमंत्री के जन्म दिन पर सरदार सरोवर बाँध में पानी भर कर जब हजारों परिवारों को बिना पुनर्वास डुबाया गया तो उनका घर भी डूब गया था। लेकिन, उन्होंने घर नहीं छोड़ा था। बिना पुनर्वास इस बार फि‍र उनके खेत डुबाए दिए गए हैं और आवासीय परिसर में सरदार सरोवर का पानी भरना शुरु हो गया है।

अपने ऐसे आधार स्तंभों के कारण ही नर्मदा बचाओ आंदोलन न्याय की इस लड़ाई को पिछले साढ़े तीन दशकों से बरगी से लेकर सरदार सरोवर बांध तक सफलतापूर्वक जारी रखने में सफल हो पाया है। 

जगन्नाथ काका का बिछड़ जाना कई कार्यकर्ताओं के लिए निजी तथा पूरे आंदोलन के लिए अपूरणीय क्षति है। नर्मदा घाटी के संघर्ष के इतिहास में वे मील का पत्थर बने रहेंगें और उनके दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व से प्रेरणा लेते हुए प्रभावित अंतिम व्यक्ति को न्याय‍ मिलने तक हम यह लड़ाई जारी रखेंगें।

आंदोलन की प्रमुख चित्‍तरूपा पालित ने कहा कि आंदोलन के सशक्‍त स्‍तम्‍भ थे जगन्नाथ काका। जन स्‍वास्‍थ्‍य अभियान के सहसंयोजन अमूल्‍य निधि ने कहा कि बाबा की अपने अंतिम समय तक आंदोलन के प्रति सक्रियता हमें सदैव प्रेरित करती रहेगी। आंदोलन से जुडी सुरभि ने सोशल मीडिया पर अपने श्रध्‍दासुमन अर्पित करते हुए कहा कि काका की दृढ़ता और स्नेह दोनों ही भूले नहीं जा सकते है। यह अनुकरणीय हैं। 

जगन्नाथ काका : इतिहास के एक अध्याय का पूरा होनाआलोक अग्रवाल

नर्मदा आंदोलन के सबसे सशक्त स्तंभों में से एक जगन्नाथ काका ने 90 वर्ष का भरापूरा जीवन जीने के बाद आज हम सबसे विदा ले ली। उनका पूरा जीवन नर्मदा के संघर्ष को समर्पित रहा और इसमें वह लगातार एक युवा की ऊर्जा के साथ सक्रिय रहे।

मुझे याद आ रहा है सन 1990 में आंदोलन में पूर्णकालिक रूप से जुड़ने के बाद निमाड़ में संगठन का काम हम एक टीम के रूप में करते थे। उसमें जगन्नाथ काका,नेतृत्वकर्ताओं की एक बड़ी टीम में प्रमुख थे। हम सब पर लगभग 150 गांवों के संगठन की जिम्मेदारी थी। उस दौर में लगभग हर दिन ही गांव गांव के दौरे पर रहना होता था। कभी कभी तो दौरे पर निकले तो सात दिन बाद घर आना होता था, पर जगन्नाथ काका अपने घर खेत के हर काम को छोड़कर हमेशा उपलब्ध रहे।  आंदोलन के छोटे बड़े सभी कार्यक्रमों में तंबू लगाने, दरी बिछाने से लेकर हजारों लोगों के खाने की व्यवस्था तक हर कार्य बेहिचक और उत्साह से करते थे। हर परिस्थिति में अविचिलित रहना उनकी खासियत थी, आंदोलन के किसी भी दौर में मैंने उनमें कभी निराशा नहीं देखी।

खुद के घर से दूर, नर्मदा घाटी के तमाम ग्रामीण कार्यकर्ताओं का घर, हम जैसे कार्यकर्ताओं का घर बन गया था। उसमें से एक प्रमुख घर काका का था। जहाँ कभी भी पहुंच जाओ, खाना खाओ, सो जाओ…

मुझे याद है सन 1992 में बड़वानी में एक रैली के पहले पुलिस हमें पकड़ने आयी। मुझे कार्यालय के नीचे पुलिस जीप में बैठा लिया गया। काका मोटरसाइकिल से वापस जा रहे थे, चाहते तो वह घर जा सकते थे, पर वह खुद करके आये और गाड़ी की चाभी सामने लोहार को देकर खुद पुलिस जीप में बैठ गए। फिर हम मंडलेश्वर जेल में साथ साथ रहे। पूरी तरह से निर्भीक थे काका।

नर्मदा के ऊपर के बांधों नर्मदा सागर, महेश्वर में जब हम लोग संगठन बनाने लगे तो लंबी दूरियों का खयाल न रखते हुए जब भी आग्रह किया, काका हमेशा लोगों को ताकत देने पहुँच जाते.

काका का एक किस्सा याद आ रहा है जो वह खुद बहुत मजे से सुनाते थे ….. वह काकी के साथ अंजड़ (उनके घर से 15 किमी दूर) गये थे। मोटरसाइकिल में काकी पीछे बैठी थीं। जब वापस आ रहे थे तो अंजड में ही एक रिश्तेदार ने रोककर कुछ बात की और फिर काका ने मोटरसाइकिल बढ़ा दी। घर पहुंचकर मोटरसाइकिल रोककर काकी को कहा कि गेट खोल दें। जब काकी गेट खोलने आगे नहीं आयी तो पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि काकी तो पीछे थी ही नहीं। असल में जब उनके रिश्तेदार ने गाड़ी रोकी थी तब काकी उतर गई थी और वह बैठ भी न पायीं और काका आगे बढ़ गए…और सबसे मजेदार बात यह है कि वह रास्ते भर काकी से बात करते रहे पर फिर भी उन्हें पता न चला..  अब स्मृतियां शेष हैं…..प्रेरणाएं अनेक हैं।

हम सबका सौभाग्य है कि हमें उन जैसे व्यक्ति सान्निध्‍य मिला। जगन्नाथ काका जैसे लोग इतिहास में एक पूरे अध्याय हैं। नर्मदा घाटी के संघर्ष के हजारों सहयात्रियों के ह्रदय में वह सदैव अमर रहेंगे।

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